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________________ १२४ संग्रहणीसूत्र. अर्थ-- प्रमाणांगुले एक लाख योजन, ते उपर अनुक्रमे एंसी, बत्रीश, अावीश, वीश, श्रढार, सोल ने श्राप योजन - सहस के० ए पूर्वोक्त सर्वने सहस्र जोमीएं. ए रीते ए साते पृथ्वीने प्रत्येके पिंमनुं जामपणुं जाणवू. एटले रत्नप्रजा- एक लाख ने एंसी हजार, शर्करप्रजानु एक लाख ने बत्रीश हजार, वासुप्रनानुं एक लाख अहावीश हजार, पंकप्रना- एक लाख वीश हजार, धूमप्रनानुं एक लाख अढार हजार, तमप्रनानु एक लाख सोल हजार, तमतमप्रजानु एक लाख आठ हजार योजन- पृथ्वीपिंग जाणवू. ए साते पृथ्वीन जाडपणुं कडं. वली घनोदधि, घनवात, तनुवात ॥२०ए ॥ अने गयणंच के० अकाश-- ए चारे एकेक पृथ्वीतले पश्चाणं के प्रतिष्टान एटले आश्रय जाणवां. अहींयां घनोदधि अने घनवातनुं स्वरूप विमानोने अधिकारे वखाएयुं . श्रने तनुवात को पण ठेकाणे वखाएयुं नथी; तनुवात अने श्राकाश ए बे प्रसिक जे. त्या घमा घनोदधि उपर प्रतिष्टित डे, अने घ. नोदधि धनवात उपर प्रतिष्टित बे, अने घनवात तनुवात उपर प्रतिष्टित , तनु. वात आकाश उपर प्रतिष्टित जाणवो. श्राकाश को उपर प्रतिष्टित नथी. __ एम शेष पृथ्वीने तले पण एवी रीते चारे जाणवा. परंतु एटबुं विशेष जे सा. तमी नरकपृथ्वीनी तले घनोदधी, घनवात, तनुवात, ते तले लोकाकाश बाहुल्य बे. हवे घनोदधि प्रमुख चारेने मध्य नागे पिंडस्थूलपणुं कहे . घनोदधि मध्यजागे वीश हजार योजन जामपणे , अने घनवात, तनुवात, ने श्राकाश, ए त्रणे मध्यनागे जाडपणे असंख्याता योजन प्रमाण जुया के युक्त जाणवा. तेमां घनवातथी असंख्यातगणा तनुवात, अने तनुवातथी असंख्यातगणुं श्राकाश जाणवू. ॥ १० ॥ ___ न फुसंति अलोगं ॥ चन दिसंपि पुढवीयवलय संघहिया अर्थ- सात पृथ्वीन घनोदधी, घनवात, अने तनुवात संबंधी वलय- तेणे पृथ्वी वीटाश्थकी चारे दिशाए अलोकने न फुसंति के फरसे नहीं. ते कहे बेःसाते पृथ्वीउने तले मध्यनागे घनोदधि वीश हजार योजन बे, अने घनवातादिक असंख्याता योजन बे. तेवार पडी प्रदेशे घटती घटती आप आपणी पृथ्वीने बेडे बेक थोमी थर थकी वलयाकारे पृथ्वीने वीटी रहे . त्यां वलयर्नु उंचपणुं श्राप आपणी पुथ्वीने अनुसारे जाणवू, अने बेडे जामपणुं कहे . रयणाए वखयाणं ॥ब-पंचम जोयणं सहूं ॥ ११ ॥ विकंनो घणनददी ॥ घण तणुवायाण हो जद संखं ॥ सत्तिनाग गाळयंगाळयंच तद गाजय तिनागो॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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