________________
११७
संग्रहणीसूत्र. अर्थ-रत्नप्रजा पृथ्वीना पहेला प्रतरनेविषे नव सहस्स के नेवु हजार समा के वर्ष,बीजाप्रतरने विषे नेवु लाख वर्ष, त्रीजा प्रतरने विषे एक पूर्वकोडीवर्ष, चोथा प्रतरने विषे एक सागरोपमना दश नाग करीएं, तेवो एक नाग. तेवार पड़ी शकिकनागवुढ्ढी के प्रतरे एकको नाग वधारीएं तेवारे जाव के० यावत् तेरमा प्रतरनेविषे श्रयरं के० एक सागरोपमनी उत्कृष्टी श्रायुस्थिति थाय. एटले पांचमे प्रतरे बे लाग, बहे त्रण जाग, सातमे चार नाग, आम्मे पांच नाग, नवमे उ नाग, दश मेसात नाग, अगीयारमे पाठ नाग, बारमे नव नाग, अने तेरमे प्रतरे दश नाग एटले तेरमा प्रतरे सागरोपम पूर्ण. ॥ २१ ॥ श्यजित के० ए उत्कृष्टी आयुष्यनी स्थिति कही.
हवे पुण के० वली जहन्न के जघन्य स्थिति कहे . दसवास सहस्सलकपयर फुगे के प्रथम प्रतरने विषे अनुक्रमे दश हजार वर्ष, बीजे प्रतरे दश लाख वर्ष, यद्यपि दश लाख सूत्र पाउमां न कह्यां, परंतु उत्कृष्टी स्थितिने अधिकारे नेवु सहस्र नेवु लाख उपर जोडी लाख कह्यां; तेने अनुसारे पाठमा दश शब्द कह्या विना पण दश लाख कहेतां दोष नथी. अने सेसेसुनवरि जिहा के हवे बागला त्रीजा प्रतर श्रादे देश्ने जे प्रतरो बे, तेउनेविषे उवरि के उपरना प्रतरनी जे जिहा के उत्कृष्टी स्थिति बे, तेज श्रागले अहोकणिका के अधो एटले नीचे नीचे प्रतरे कनिष्ट एटले जघन्य स्थिति परंपुढवी एटले प्रत्येक पृथ्वी प्रते जाणवी, एटले जघन्य स्थिति होय. ते स्पष्टार्थ यंत्र देखी समजजो. एटले रत्नप्रना पृथ्वीविषे उत्कृष्टी स्थिति कही. अने सर्व पृथ्वी विषे प्रत्येक प्रतरे जघन्य स्थिति कही. ॥ २० ॥ हवे बीजी नरक पृथ्वीश्रादेदेश्शेषपृथ्वीनेविषे उत्कृष्टी स्थिति कहेवाने अर्थे करण कहेले.
नवरि खिइ विश विसेसो॥ सग पयर विदत्तु श्च संगुणि ॥
नवरिम खिश वि सहि ॥इबिय पयरंमि उक्कोसा॥२०३॥ अर्थ-उवरि के उपरनी खिइ के क्षिति एटले पृथ्वी, तेनी जे उत्कृष्टी निश के० स्थिति, तेने के वांडित नरक पृथ्वीनी उत्कृष्टी स्थिति साथे विसेसो के० विश्लेष करीएं, एटले अधिक स्थितिमांथी उसी स्थिति काढीएं, शेष रहे तेने पण उपचारथी विश्लेष कहीएं. ते विश्लेषनो श्रांक सगपयरविहत्तुश्व के अहींयां वांडी नरक पृथ्वीने सग एटले स्वस्व ते पोतपोताना प्रतरे वेहेंचियें. ते वेहेंचतां जे आंक श्रावे ते प्रतर संख्याए संगुणि के गुणीएं, ते गुण्ये थके जे श्रांक श्रावे ते उवरिमखिर के उपरनी पृथ्वीनी उत्कृष्टी वि के० स्थिति तेणे सहित करीएं, तेवारे इछियपयरंमिउकोसा के वांडीत प्रतरे उत्कृष्टी स्थिति थाय.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org