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________________ संग्रदणीसूत्र. सत्तय पुढवी सुविई ॥ जिठो वरिमाइ दिन पुढवीए ॥ दोइ कमेण कणिका ॥ दसवास सदस्स पढमाए ॥ २०० ॥ अर्थ - इति पूर्वोक्त प्रकारे देवाणं के० देवतानां विश्पमुहं के० स्थिति प्रमुख एटले स्थिति, भुवन, अवगाहना ते शरीर प्रमाण, उपपात विरहकाल, चवन विरहकाल, एक समये उपपात संख्या, एक समये चवन संख्या, गति ने श्रागतिरूप नव द्वार जणियं के० कह्यां. दवे एहज नव द्वार नारयाण के० नारकी साथे जोगी ने बुछामि के० हुं कहीश. दवे यथोद्देश, निर्देश, एटले जे द्वारनो पहेलो उद्देश कीधो हतो, तेज द्वार श्र Firi पण प्रथम कहे बे. त्यां साते नरकनी उत्कृष्टी अने जघन्यायु स्थिति श्र नुक्रमे कहे . रत्नप्रजा पृथ्वीने विषे उत्कृष्टी स्थिति एक सागरोपम, एम बीजी शर्करप्रजाने विषे त्रण सागरोपम, त्रीजी वालुकाप्रजाने विषे सात सागरोपम, चोथी पंकप्रजाने विषे दश सागरोपम, पांचमी धूमप्रजाने विषे सतर सागरोपम, बही तमप्रजाने विषे बावीश सागरोपम, सातमी तमः तमप्रजाने विषे तेत्री सागरोपम ॥ १७॥ ए सत्तयपुढवी सुविई to सात नरकपृथ्वीने विषे श्रायुष्यनी स्यति ते जिहो के० ज्येष्ठ एटले उत्कृष्टी कही. हवे वरिमा के० उपरनी उत्कृष्टी स्थिति ते हि के० देवला नरके जघन्य जावी. जेम रत्नप्रजानी उत्कृष्टी एक सागरोपमनी स्थिति ते शर्करप्रजाए जघन्य - स्थिति जाणवी. एम उपरनी उपरनी उत्कृष्टी स्थिति ते देवल देवल अनुक्रमे कणिठा ho arष्ठ एटले जघन्य जाणवी. जेम बडी तमप्रजानी बावीश सागरोपम उत्कृष्टी स्थिति ते सातमी तमः तमप्रजाने विषे जघन्य जाणवी ने पढमाए के० पहेली रत्नप्रजा पृथ्वी एं दश दजार वर्ष जघन्य स्थिति जाणवी तथा जघन्य ठाने उत्कृष्टीनी वचमां जे श्रायुष्यनी स्थिति होय, ते मध्यम स्थिति जाणवी. सबघा नरकने विषे एहज व्यवहार जाणवो. ॥ २०० ॥ Jain Education International ११७ दवे रत्नप्रजा पृथ्वीना तेर प्रतर बे. बीजीना अगीयार, त्रीजीना नव, चोथीना सात, पांचमीना पांच, बहीना त्रण, सातमीनो एक, ए प्रतरसंख्या आगल कहेशे . हाल ते प्रतरो प्रते जघन्य तथा उत्कृष्टी आयुष्य स्थिति कहे . नवइ सम सहस लका | पुवाणं कोडी यर दस जाग ॥ इक्कि नाग वुढी ॥ जाच्प्रयरं तेरसेपयरे ॥ २०१ ॥ इय जिठ जदमा पुण || दस वास सदस्स लक पयर डुगे ॥ सेसेसु नवरी जिठा ॥ प्रदो कपिठाउं पई पुढवी ॥ २०२ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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