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________________ १२२ संग्रहणीसूत्र. गणे सैलेशीकरणे अंतर मुहुर्तप्रमाण अणाहारक जाणवा. अने सादि अनंत मोदमाहे सिझना जीव अनंतकाल श्रणाहारक जाणवा. ॥ हवे देवता, खरूप कहे .॥ केसहि मंस नद रोम ॥ रुदिर वस चम्म मुत्त पुरिसेहिं ॥ रहिया निम्मल देदा ॥ सुगंध नीसास गय लेवा ॥१७॥ अर्थ-सर्व देवतार्नु पूर्वनवनां उपजावेलां शुजकर्मना उदयथकी केश, अहि के हाम, मंस के मांस, नख, रोम, रुधिर, वसा के मांसनी चरबी, चाममी, मूत्र, पुरिष, ( विष्ठा ), एनए करी रहिया के० रहित एवं निम्मल के मलरहित शरीर होय. कपूर तथा कस्तुरीना सुगंध सरखो मुखनो निश्वास होय. तथा गतलेपा के जाति लावण्यनी पेरे रज प्रश्वेदादिकना उपलेप रहित होय. ॥ १७ ॥ अंतमुहुत्तेणंचिय ॥ पजात्ता तरुण पुरिस संकासा ॥ सवंग नूसणधरा ॥ अजरा निरुया समा देवा ॥ १७ ॥ अर्थ-वली उत्पत्तिकाले अंतरमुहूर्त्तमांदे पर्याप्ति पूर्ण कस्या पली अत्यंत तरुण पुरुष सरखा सवंग के सर्वांगनेवीषे नूषणना धरनार, अहींयां श्रीजीवानिगमसूत्रना अभिप्राये कोश्क कहे डे के, देवता श्राजरण तथा वस्त्रेकरी रहित बे, ते उत्पत्तिकालेज जाणवा. परंतु उपपात सजाए उपजे, अनिषेक सजाए स्नान करे, अलंकार सजाए अलंकार पेहेरे, व्यवसाय सजाए पुस्तक वांची धार्मिक पीबी प्रमुख पूजोपकरण व्यवसाय लीए, पढी सुधर्मा सजाए सिहायतनने विषे जिनप्रतिमाने पूजे. ए सर्व जूदां जूदां कृत्य करे तो तेने सदाकाल श्राजरण अने वस्त्ररहित केम कहिएं? ते माटे जे एम कहे जे ते असंप्रदाय अर्थ जाणवो. मात्र उत्पत्ति वेलाएज बाजरण तथा वस्त्ररहित होय. वली सदा यौवनवय प्राप्त, जरारहित, निरुया के० निरुज ते काश श्वासादिक रोगरहित, समा के समचतुरंत संस्थानी देवा के० देव होय. अणिमिस नयणा मण ॥ कज साहणा पुप्फ दाम अमिला णा॥ चनरंगुलेण नूमि ॥न बिंति सुराजिणाबिंति ॥ एनए॥ अर्थ-वली देवता स्वनावे अणि मिसनयणा के अनिमिषनेत्र एटले देवशक्ति विशेषे आंख मीटकारे नहीं. मणकऊसाहणा के मनेकरी सर्व कार्य साधक होय, अने जेमना उरनेविषे पुप्फदाम के फूलनी माला ते निरंतर श्रमिलाण के अम्लान एटले कुमलाय नहीं एवी होय. वली जे मनुष्यलोकमांहे आव्या थका चउरंगुसेणचूमि के चार अंगुल नूमिकाथकी उंचा पग राखे; पण नूमिकाने नजिवंति के० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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