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________________ १०४ संग्रहणीसूत्र. न कहीये? तेहने उत्तर कहे जे जे, अविरति नाम कर्मोदयथकी देवताना जवखनावे करी चारित्र परिणामनो अनाव , अने अप्रवीचार सुखथकी उपशम सुख अनंतगणुं . क्यांक अप्रविचारने स्थाने अल्पविकार एवं लख्युं . ॥ १६६ ॥ ॥ तेज सूत्रकार आगली गाथाए कहे .॥ जं च कामसुहं लोए ॥ जं च दिवं महासुदं ॥वी यराग सहस्सेय॥त नागंपिनग्घ॥१६॥ अर्थ- लोए के लोकनेविषे जं के जे कामसुहं के० कामसुख कायसेवारूप, तथा देवतासंबंधी जे महा के परमसुरतसुख ते सर्व श्रीवीतराग एटले विशेषेकरी गया जे राग हेष जेहना, एवा श्रीवीतरागर्नु जे प्रशमसुख तेहने अनंतमे नागे पण ए पूर्वोक्त सुख समर्थे नहीं. एटले वीतरागना सुखना अनंतमा नाग सरखं पण न होय. ॥ हवे देवीनुं उत्पत्तिस्थान कहे .॥ उववा देवीणं ॥ कप्प पुगं जा परो सदस्सारा ॥ गमणा गमणं नही॥ अच्चुय पर सुराणंपि॥१६॥ अर्थ-जुवनपति, व्यंतर, ज्योतषी, सौधर्म, अने ईशान देवलोक सुधी यावत् देवीणं के देवी ने उववा के उपज होय. उपरांत देवीने उपज होय नहीं. अने देवताना जोगने माटे उपरना देवलोकमांहे सौधर्म तथा ईशानदेवलोकनी अपरिगृहिता देवी उपरो के उपर सहस्रार देवलोकसुधी जाय. अने सहस्रार देवलोकथी उपरना देवलोके देवी/नो गमणागमणं नबी के जावु श्राव, नथी. कदाचित् श्राणतादि देवलोक योग्य देवीने कायसेवानी वांडा उपजे, तो मनुष्यसाथे अथवा सौधर्म अने ईशान देवलोकना देवतासाथे कायसेवा पण करे, परंतु विषयसेवामाटे आणतादि देवलोकनेविषे जाय नहीं. तथा ते देवो पण श्रावे नहीं. कदाचित् बारमा देवलोकनो देवता मनसेवी मनुष्यलोकमां श्रावी मनुषणि स्त्रीसाथे कायसेवा करे, तो मरीने तेज स्त्रीने पेटे उपजे. तेमज देवीने पण कायसेवा होय. वली अच्चुत पर सुराणंपि के अचुत देवलोकथकी उपरांत देवतार्नु पण गमनागमन नहीं. हेग्ला देवोने बारमा देवलोकथकी उपरांत जावानी शक्ति नथी. तथा उपरना देवताने अहींयां आववानुं प्रयोजन नथी. केमके ग्रैवेयक तथा पंचानुत्तरनादेवता ते, तीर्थंकरना कल्याणिकमहीमाए पण शय्या थकी नीचे उतरे नहीं. किंतु शय्याएं बेगज नमस्कारादिक नक्ति साचवे. अने संदेह उपजे तो मनवर्गणाए प्रश्न करे, ते केवली केवलज्ञाने जाणीने तेहनो मनोवर्गणाएं उत्तर श्रापे. तीर्थकरनी मनोवर्गणा उत्तरसहित ते प्रश्न अवधिज्ञाने जापीने देवता पोतानो संदेह टाले. परंतु अहीयां आवे नही. ॥ १६७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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