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________________ १०५ संग्रहणीसूत्र. ॥ हवे कील विषिया देवतानां स्थानक कहे जे.॥ ति पलिय तिसार तेरस ॥ सारा कप्प उग तश्य लंत अहो । किब्बिसिय नहुँति उवरिं॥ अच्चुय परउनिगाई ॥ १६ए ॥ अर्थ-अशुज कर्मना उदयेकरी देवतामांदे चंडाल सरखा, ते किलविषिया देवता कहीएं. ते सौधर्म तथा ईशान देवलोकतले तिपलिय के त्रण पक्ष्योपमने आयुष्ये वसे बे. तेमज सनत्कुमारदेवलोकने तले तिसार केत्रण सागरोपमने आयुष्ये वसे बे. एमज तेरस के तेर सागरोपमने श्रायुष्ये बडे लंत के लांतक देवलोकने श्रहो के अधोजागे वसे . किब्बिसिय न हुँति उवार के ए किविषिया देवता ते लांतकनामा बग देवलोकथी उपरांत उपजे नहीं. वली अच्चुय के अञ्चत देवलोकथी पर के उपरांत अनिउँगाके अनियोगिकादिक देवता तथा श्रादिशब्दथी सामानिकादिक देवता पण न उपजे. किंतु ए नव. ग्रैवेयक, तथा पंचानुत्तर विमानवासी समस्त देवता ते स्वयमेवपणे इंउ सरखा जाणवा. ॥ हवे सौधर्म तथा ईशानदेवलोके अपरिग्रहिता देवीना केटला विमान तथा केटयुं आयुष्य ? तथा किया किया विमानवासी देवताने उपजोग योग्य होय ? ए अर्थ विस्तारथी कहे बे.॥ अपरिग्गद देवीणं ॥ विमाणलरका उ हुँति सोहम्मे ॥ पलियाई समयादिय॥हि जासि जाव दसपलिया ॥ १० ॥ ता सणंकुमारा ॥णेवं वहृति पलिय दसगेदिं ॥ जा बंन सुक आणय ॥ आरण देवाण पन्नासा ॥ १७॥ ईसाणे चन लरका । सादिय पलियाई समय अदिअ विश् ॥ जा पनर पलिय जासि ॥ ताठ माहिंद देवाणं ॥ १३ ॥ एएण कमेण नवे ॥ समयादिय पलिय दसग वुढीए ॥वंत सहसार पाणय ॥ अच्चुय देवाण पण पन्ना ॥ १७३ ॥ अर्थ- केवल अपरिग्रहितादेवीनां उ लाख विमान सौधर्मदेवलोके बे. तेमाहे जे वैमानमांहेली देवीउनु एक पट्योपमर्नु पूर्ण आयुष्य , ते देवी सौधर्मवासी देवताने जोग योग्य जाणवी. अने जे देवीने पलिया के एक पल्योपमादिक एटले एक पट्योपम उपरे समयाहिय के एक समय अधिक, अथवा बे समय, त्रण समय, संख्यातासमय, असंख्यातासमय, अधिक-एम जाव के० यावत् दश पत्योपमना आयुष्यवाली अप. १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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