SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ संग्रहणीसूत्र. संस्थान; तथा तेउकायतुं सूचीकलाप संस्थान, वायुकायतुं पताकाने श्राकारे संस्थान, अने वनस्पतीकाय वीचित्र प्रकारनां संस्थानवंत होय. ए रीते कम्मपयडीमां वखाण्यां डे. - वायुकाय वैक्रियशरीर करे, तोपण पताका जेवां संस्थाने करे, अने पंचेंजीतिर्यच अने पंचेंडीमनुष्य, तथा बारमा देवलोकना देवतासुधी जे उत्तर वैक्रियरूप करे; ते नानाप्रकारनुं संस्थान जाणवं. श्रने मूलगुरुरूप समचरंत्र जाणवू. तथा नारकी जे उत्तरवैक्रियरूप करे ते पण हुंडकसंस्थाने जाणQ. ए देवता, गतिछार संपूर्ण थयुं. ॥ हवे देवता देवगति थकी चवीने क्या क्या उपजे ? ते आगति छार कहे . ॥ जति सुरा संखाजय ॥ गन्नय पङत्त मण्य तिरिएसु ॥ पजत्ते सुय बायर ॥ नूदग पत्तेय गवणेसु ॥ १६४ ॥ अर्थ- सामान्यपणे चारे निकायनासुरा के देवता ते देवगतिथकी चवीने एक युगलियाविना बीजा गर्नज पर्याता संखाउ के संख्याता आयुष्यना धणीजे मनुष्य तथा तियंच तेने विषे जंति के जाय. वली पङात्ते के पर्याप्ता बायर के बादर, पृथ्वीकाय, अप्पकाय, अने प्रत्येक वनस्पतीकाय ए त्रणमांहे देवता मरीने उपजे. अने शेष सूक्ष्मपृथ्वी, अप्प, साधारण वनस्पती, तथा अपर्याप्ता बादर, पृथ्वी, अप्प तथा प्रत्येक वनस्पति, तेउकाय, वायुकाय, बेंडी, तेजी, चउरेंडी, तथा युगलिया अने स. मूर्बिम अपर्याप्तातिर्यंच, तथा समूर्छिम अपर्याप्तामनुष्य, वली देवता, तथा नारकी-एटले स्थानके देवता चवीने उपजे नहीं. ॥ वली श्रागतिनुं विशेषपणुं कहे . ॥ तबवि सणंकुमारं॥प्पनिई एगिदिएसु नोति ॥ - णय पमुदा चविलं ॥मणुएसु चेव गबंति ॥ १६५॥ अर्थ- तबवि के त्यां ते श्रागतिनेविषे पण सणंकुमारंपनिई के सनत्कुमार श्रादे देईने सहस्रार देवलोक सुधीना देवता चवीने एकेंजीमांहे उपजे नही. पण शेष एटले बाकीना स्थानके गर्नजपर्याप्ता संख्याता श्रायुष्यना धणी एहवा सामान्य मनुष्य तथा तिर्यंच तेमांहे उपजे. वली थाणत प्रमुख देवलोकथी मांमी अनुत्तरवि. मान सुधीना देवता चवीने गर्नज पर्याप्ता संख्याता थायुष्यवाला सामान्य मनुष्यमांहे उपजे. पण पृथ्व्यादिक एकेंजीमांहे नउपजे.तथा तिर्यंचमांहे पण उपजे नहीं॥१६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy