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संग्रदणीसूत्र. चमगं ॥ सबब अलकणं नवे 5 ॥ गनय नर तिरिय
बदा ॥ सुरासमा हुंडया सेसा ॥ १६३ ॥ अर्थ- पहेलु समचउरंस, बीजु न्यग्रोध परिमंगल, त्रीजुं सादि, चोथु वामन, पांचमुं कुज, हुं हुंमक, ए रीते जीवनां ए ब संस्थान होय. अने अजीवनां पांच संस्थान होय. एक परिमंगल, बीजं वट्ट, त्रीजु त्रिंस, चोथु चरंस श्रने पांचमुं आयत. ए पांच संस्थान ते अजीवपुजलस्कंधना होय.
पहेला सर्व स्थानके सर्व अवयवनेविषे लक्षणोपेत पहेतुं संस्थान होय. समा के लक्षणोपेत चारेदिशिना चार अस्त्र के शरीरना खूणा ले. ज्यां पद्मासन बेग चारे दोरी सरखी होय ते समचरंस संस्थान तीर्थकरनी प्रतिमाने होय. ___श्रने जे वडवृदनीपरे एटले जेम वडवृद नीचे थोडं हीन होय, अने उपर संपूर्ण पूरूं होय; तेम जे संस्थान नाहीए के नाजिने हेठे हीन होय; अने उपर लदणोपेत होय. ते बीयं के बीजु न्यग्रोध संस्थान जाणवं.
त्रीजु सादि के श्रादि ते नानिने अहो के अधो एटले नानिने नीचे लक्षणोपेत अने नाजिउपर हीन ते सादिसंस्थान जाणवू.
चोथु वामन के० पूठ, उदर अने उर के हृदय ए हीनलक्षणे होय; एटलांने वजं के वर्जकरीने एटले त्याग करीने बाकी मस्तक, ग्रीवा, पाणी के हाथ, पाए के पग एटलां सुलक्षणां होय ते वामन संस्थान जाणवं. ॥ १६ ॥
विवरीयं पंचमगं के पांचमुं एथकी विपरीत एटले पूठ, उदर, अने हृदय ए सर्व लक्षणोपेत होय. अने मस्तक, ग्रीवा, हाथ, पग, लक्षणे हीन होय. ए रीते वामन संस्थानथकी जे विपरीत अंग होय ते कुब्ज संस्थान कहीएं.
हं समस्त शरीरना अवयवरूप अलक्षण एटले विपरीत लक्षण होय. ते हुंडक संस्थान कहीएं. ॥ १३ ॥ ॥हवे ए ब संस्थान ते किया किया जीवने विषे होय ? ते जुदा जुदा विवरिने कहे .॥
गर्नेजमनुष्य तथा गर्नेजतियेंचमांहे बहा के बए संस्थान होय, अने सुरा के देवताने एक समा के० समचरंस्त्र संस्थान होय, अने शेष थाकता नारकी, एकेडी, बेंजी, तेंडी, चनरेंजी तथा समूर्छिमपंचेंजीतिर्यंच, तथा समूर्बिममनुष्य ए सर्व हुंमया के० ढुंमक संस्थानवाला होय. ॥ १६३ ॥ ___ कम्मपयडीनेविषे समूर्छिमपंचेंडीतिर्यंचमांहे बए संस्थान वखाण्यां बे. एकेंजीमांहे ढुंडकसंस्थान, तेमांहे पण पृथ्वी मसूरचंदा, थने अपकायतुं स्तिबुक बिंड जेवं
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