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________________ pg संग्रहणीसूत्र, . माटे केवी रीते देवता थाय ? तेहने उत्तर श्रापवामाटे जगवतीसूत्रना वृत्तिकार श्रीअजयदेवसूरि एवं समाधान करे के, संाविशेषरूप अध्यवसाए करी मनरहित समूर्छिम पण देवगति पामे. ॥ हवे वली अध्यवसाय विशेषे गतिर्नु तरतमपणुं कहे . ॥ बालतवे पडिबछा ॥ नक्कड रोसा तवेण गारविया ॥ वेरेणय पडिबझा ॥ मरिलं असुरेसु जायंति॥१५॥ अर्थ- जे अरिहंतनी श्राझारहित तत्वज्ञाने शून्य ते बाल एटले मिथ्यात्वी होय, तेहनुं जे पंचाग्नि प्रमुख तप ते तप घणा जीवोनु घातकारी, तेवा तपनेविषे प्रतिबंध एटखे आसक्त होय. वली तपस्वी थकां जकडरोसा के० उत्कृष्टरोषनाधरनार होय, तथा वली तपस्या करीने अहंकार करे. वली तपस्वी थकां कृम दैपायननीपरे कोश्क जीवनी साथे वैरजाव करवानो प्रतिबंक करे. एहवा जीव मरी असुरेसु जायंति के असुरकुमारजुवनपतिमाहे उपजे. ॥ १५० ॥ रअगाद विस नकण ॥ जल जलण पवेस तएह बुद उद गिरिसिर पडणान मुया ॥ सुहनावा हुंति वंतरिया ॥१५॥ वली रझुगाह के जे गले दोरडानो फांसो खाइ मरे, तथा विषनदण करी मरे, वली जल के पाणीमांहे बडीने मरे, तथा जलण के अग्निमांहे प्रवेश करी मरे, तण्ह के तृषाये करी मरे, तथा बुह के० धाये पीड्यो थको मरे, विरहादिक उखे करी मरे, गिरि सिर के० पर्वतना शिखर थकी पमीने मरे. एटलां स्थानके, अभ्यंतर रोज परिणामने अनावे, अने मंद शुज परिणामे, शूलपाणी प्रमुखनीपरे जो शुज परिणाम श्रावे तो मरीने व्यंतर देवतानी गति पामे. ॥ १५१ ॥ तावस जा जोसिया ॥ चरग परिवाय बनलोगो जा ॥ जा सदस्सारो पंचिंदि ॥ तिरिय जा अच्चु सढा ॥ १५ ॥ अर्थ- वली कंद मूल फल श्राहारी वनवासी तावस के तापस जाति मरीने नुवनपति श्रादे देश जा के यावत् उत्कृष्टुं जोसिया के ज्योतषीसुधी जाय. तथा चार पांच नेला थक्ष टोढुं मली निक्षा मागे, तेदने चरक कहीएं. अने कपिलमति परिव्राजक ते त्रिदंमिया कहीएं. ते मरीने जुवनपति आदे देश उत्कृष्टा ब्रह्म देवलोक सुधी जाय. गर्नज पर्याप्ता पंचेनी हाथी, बलद, प्रमुख तिर्यंच संबल कंबल सरखा सम्यक्त्व देशविरति सहित मरीने सहस्रार देवलोकसुधी जाय. देशविरति सहा के० श्रावक मनुष्य मरीने बारमा श्रचुतदेवलोकसुधी जाय. ॥ १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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