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________________ वीरस्तुतिरूप हुँडिनुं स्तवन ६५ तावश्यं उहिसिधा उक्कोसेणं सयं एगदिवसेणं मसिमेणं दोहिं दिवसेहिंसयं ज| हनेणं तिहिं दिवसेहिं सयं एवं जाव वीसश्मं सयं एवरं गोसालो एगदिवसेणं उदिसितंति जइ सो विउ एगदिवसेणं अणुस विङाई बहनविन आयंबिल गे| णं अणुस्म विशति ॥ अर्थः-पन्नतीएके जगवती सूत्रनेविषे, आश्माणं अहाहं सयाके धुरनां आठ शतक ते दो दो उदेसगानदिसिशंतिके बेबेउदेसा उद्देशीए, गवरके ० एटलुं विशेष जे, चउबसयं पढमे दिवसे बहके चोथा शतकना पहेले दिवसे बात नद्देशा, बितीय दिवसे दो नदेसा नदिसिशंतिके बीजे दिवसे बे उद्देशानो। नद्देश करीए. हवे एवमा सया आरनके नवमा शतकथी मामीने जावश्यं पावे के जेटलं जणे. तावश्यं नहिसिसके तेटलो नदेशीए. नक्कोसेणं सयं एगदिवसेणं के नत्कृष्टुं एक दिवसे शतक, मधिमेणं दोहिं दिवसेहिं सयंकेमध्यम बे दिवसे शत क, जहमेणं तिहिं दिवसेहिं सयंकेण्जघन्यथीत्रण दिवसे शतक उद्देशीए. एवं जाववी समं सयंके एम यावत् वीशमा शतक लगे कहेवू. गवरंके एटनु विशेष जे, गोसा लो एगदिवसेणं नदिसिसंतिके गोशालानुं पन्नरमुं शतक एक दिवसे नद्देशीए. जसो विउके जो ते बुद्धिवंत होय तो एगदिवसेणंअणुम विसंतिके एके दिवसे अनुज्ञा क रीए. अहन विउके जो बुद्धिवंत न होय तो आयंबिल उगेणं अणुमा विशंतिकेण्बे आंबिले अनुझा करीए. एटले ए नाव जे पूर्वे जेटलुं जणता तेटली क्रिया करावीने नणावता, ते माटे एम कर्दा जे बे दिवसे बे यांबिलनी क्रिया करावीने अनुज्ञा करावे. सूत्रं ॥ एगवीस बावी तेवीसश्मा सयाइं एकेक दिवसेणं नदिसियंतिके एकवी शमुं, बावीशमुं, ने तेवीशमुं शतक ते एकेक दिवसे नद्देशीए. इत्यादिक सर्व वातो योग विधियी जणाय. हवे पाठ अधूरो, ते सूत्र लखीए ए. जे माटे को सामाचारी नेदे तथा काल नेदे याधुनिक क्रिया फेर दीसे माटे अर्थ नथी लखता.॥ चवीस इमंसयं दोहिं दिवसे हिं बड उद्देसगा बंधराया असयाईएगेणं दिवसे णं सेतीसयाइं बारस एगेणं एगिदिय दस हिं जुम्म सयाई बारस एगेणं दिवसेणं एवं बेंदियाणं बारस्त तेंदियाणं बारस चनरिंदियाणं बारस असन्नि पंचिंदियाणं बारस सन्निपंचिंदिय महा जुम्म सयाई एगवीसं एगदिवसेणं उद्दिसिद्यति राति जुम्मस एगदिवसेणं नदिसिस. एत्रीजी गाथानो अर्थ ॥३॥ श्री नंदी अनुयोगज्वारमां ॥ उत्तराध्ययनेरे योग॥काल ग्रहणनोरे विधि सघलो कह्यो॥धरिए ते उपयोग॥ स० ॥ - - ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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