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________________ ६५० वीरस्तुतिरूप कुंडीनु स्तवन. लएका के साधुने आपे. तहप्पगारं के तथा प्रकार, पमिग्गरंग के नाजन हजी, परहबुसिवा के परना हाथमा ने. परपायसिवा के० परनाजननेविषे, थ फासुथ के एहद् सचित्त. जाव नो पमिग्गहेजा केल्यावत् न पम्घावे. न लिए निषेध करे,बाहच्चा के सहसात्कारे,पमिगाहएसिया के पडघाव्यु होय, सीधु होय. तंचनातिदूरगया जाणिजा के ते दातार घणो समीपे जाणीने, सेत्तमायाए के ते नित, लवणादिक लेने, तबगबिका के० ते दातार पासे जाय. जश्ने, पुवामे व आलोएसा के प्रथमथी ते लवणादिक देखाडे, पडी एम कहे. यासोत्तिवा के हे आनषावंत, नगिणीत्तिवा के० हे बहेन, मंतेकि जाणयादिन्नं के आ खुण प्रमुख तमे जाणते थाप्यु ? उदादु अजाणया के० अथवा अजाणे था प्युं? सेयनणिता के० ते एम कहे. नो खलु मे जाणयादिन्नं के० मे जाणीने न थी आप्यु. अजाणया के अजाणे आप्युं ले. एवं खलु थाहेसो के० हे आठ पावंत साधु, इंदाणिं निसिरामि के हवणां में प्राप्यु. ते नुजहवाणं परिनाएशा के० ते तमे जोगवो, अथवा तमारा साधुने वहेंची आपो. तं परेहिं समणु नायं समषु सिहं के ते परे एम जाणीने माझा बापे थके. ततो संजयामेवके० तेवारे साधु पोते कारणे, मुंजेऊवा पीएऊवा के० खाय अथवा पीए. जंच नो संचाएत्ति नोत्तएवा पायएवा के जो न नोगवी शके अथवा न पान करीश के; साहम्मिया तब वसंतिके ० त्यां साधर्मिक साधु वसता होय, संनोश्या सम पुन्ना अपरिहारिया के एक सामाचारी वाला जाणे. तप न कस्यो होय, अदूरग या समन्नायाके० डंकडा जाणीने, तेवत्तवं सिया के तेहने कहे. एटले तेहने वहेंची आपे, नो जब साहम्मियाके. ज्यां एवा साधु न होय. जहेवं बदु परिया वन्ने कीरति के बहु पर्यापन्न विधि करे, ते विधि याचारांगमा पूर्वे कही, त हेव कायदसियाके तेम करे. एवं खलु तस्स निस्कूस्स सामग्गियं के ० ए नि कुनु सामय्य जाणवू. ए मुनिने खूण वावरतां स्वरूप हिंसा क्या टली? अने मु नि उत्कृष्ट कह्या माटे शिव पद पण लीधं. वली अहींयां पण विचारज्यो, थाझा प्र माण के दया प्रमाण! इति. ॥ से निस्कूवा निस्कूणीवा गामाणुगामं दृश्शमाणे अंतरासे वप्पाणिवा फलि हाणिवा पागाराणिवा तोरणाणिवा अग्गजाणिवा अग्गलपासगाणिवा उन्नावा दरिउवा सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेशा नोउकु अंग लेशा केवलिबूया था याणमेयं सेतब परक्कममाणे पयलेशवा पवडेजवा सेतब पवलमाणे रुरकाणिवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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