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________________ ६२० वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन हवे यहींयां जिनप्रतिमा अधिकार ने माटे तवनमध्ये नथी गुंथ्यो, तोपण व्यवहारसूत्रथी आलोण अधिकार लखीए बैए, ते निश्चयथी जाणजोजी. जे नि स्कूके. जे निहु साधु, अन्नयरके अनेरो, अकिञ्चताणं पडिसेवित्ताके० करवाने अयोग्य स्थानक पडिसेविने, छेडाएके० वांबे. आलोइत्तएके आलोच. तोज बेव के ज्यांहां, अप्पणो के पोतानो, आयरिय नवसाए पासेजा के श्राचार्य उपाध्याय देखे, कप्पश्सेके कल्पे. ते साधुने, तस्संतिएके तेनी समीपे. बालो तएवाके आलोच. पडिक्कमित्तएवाके पडिकमवं. उवट्टित्तएवा के प्राय श्चित्तने टाले. विसोहित्तएवाके यात्माने विशुदि करवा, अकरणयाएके फरी अण करवे. अनुवित्तएवा के० एहवो उजमाल थयो. थहारिहंके यथायोग्य, तवोकम्मं के तप कर्म, पायबित्तं के० प्रायश्चित्त, पडिवङितएवा के० अंगीका र करीने विचरे बे. नो चेवणं अपणो पायरिय नवसाय पासेजाके0 कदाचित् पोतानो आचार्य तथा उपाध्याय न मल्या तो, जडेव संनोश्यं साहम्मियंके ज्यहां आहार पाणी नेचु करे एवा सरखा धर्मना साधु, बहुस्सुयं के बहुश्रुत, बागमंके ० घणा बागमना जाण, पासेशा के० तेमनेदेखीने, कप्पइसेत्तस्संतिए के० ते सांजोगिक साधुने समीपे कल्पे, बालोत्तएवाके बालोचवू. जावपडि कमित्तएवाके० यावत् पडिकम, नो चेवेणं संनोश्यंके० वली ते सानोगिक पण, साहम्मियंके सरखा धर्मना धणी, वशागमं पासेसाके० घणा आगमना जाण एवा न देखे तो, जनेव अन्नसंनोश्यं साहम्मियंके ज्यहां अन्यसांनोगिक थाहार पाणी एकतां न करवां ते साये एवा सरखाधर्मी, बहुस्सुयंके बहुश्रुत, बशा गमं पासेसाके० घणा आगमना जाण देखे. कप्पइसे तस्संतिएके० तेमनी स मोपे कल्पे. बालोश्त्तएवा के थालोच. जावपमिवङित्तएवाके यावत् प्रायश्चित्त ले, नो चेवणं अन्नसंनोश्यंके० ते अन्य सांजोगिक पण न मल्या,सादम्मियंके साध र्मिक,बहुस्सुयंकेगबहुश्रुत, बागमंपासेशाकेबदु आगमना धणी न देखे तो; जडेव सारूवियंके ज्यां साधुना वेषधारी, बदुस्सुयंके बहुश्रुत, बागमं पासेशाके बहु आगमना धणी देखे. कप्पंति से तस्संतिएके० तेहनी पासे कल्पे बालोइत्तएवा के आलोचq. जाव पडिवलितएवाके यावत् प्रायश्चित्त पडिवज, नो चेवणं सारूवियंके कदाचित् वेषधारी, बहुस्सुयंके बहुश्रुत, बसागमं पासेशाके० बहु आगमवंत न देखेतो, जव समोवासगंके० ज्यहां श्रमणोपासक श्रावक पखवाडे चारित्र सेवी पम्याडे, साधुपए मूकोने श्रावक थयावे. पन्जाकडंके० तेहने पश्चा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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