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________________ शोननकृतजिनस्तुतिः के हस्तिनो शत्रु जे सिंह, तेनेविषे संस्थिते के बेसनारी एवी, अने शिताराति नाराजिते- शित के चलकाट धरनारूं जे आर के पीतल, तेना करतां जे अ तिना केण्यतिशय कांति, तेणे करीने राजित के शोजित एवी, अने हे अंब के माता एवी, हे अंबिके के अंबानामाक अधिष्टायकदेवि, त्वंके तुं सुतरां के अ त्यंत. परं के प्रधान एवा, नव्यलोक केजव्यप्राणिउने अव के रक्षण कर. तुं केवी के ? तोके- परमवसुतरांगजा-परम के उत्कृष्ट, अने वसुतर के तेजवंत एवा ने अंगज के पुत्रजेना एवी, अने रावसन्नाशितारातिनारा-राव के पोताना शब्दे करीने सन्नाशित के अत्यंत नाश पमाडयोले, अरातिनार के शत्रुसमूह जेणे एवी, अने नासिनी के शोनायमान एवी, अने हारतारा के हारसरखी तार के उज्वल एवी, अने बलदेमदा-बल के पराक्रम अने देम के० मंगल, ए उने धापनार, अने अवसन्ना के खेदरहित अने अमदा के मदरहित एवीजे ॥ ॥४॥ इति श्रीमहावीरजिनस्तु संपूर्ण इति श्रीशोननमुनिकता चतुर्दिशति जिन स्तुतिश्च बालावबोधसहीत संपूर्णा ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ 1 इति श्रीशोननमुनिकत चतुर्विंशति जनस्तुति अर्थसहीत समाप्ताः 1290000000000000000000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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