SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोननकृतजिनस्तुति. १२ सनरूप जे तिमिरके धंधकार, तेना नाश कारणे, उग्रनानुप्रनाके नग्रसूर्यनी कांति सरखी; अने नूरिनंगैः के घणा जे नंग, तेए करीने नशंके अत्यं त, गनीराके गंजीर, अने जननमृतितरंगनिष्पारसंसारनीराकरांतर्निमऊऊनो तारनौः-जननके जन्म अने मृतिके मरणरूप दे तरंग के कलोल जेनेविषे एवो जे निष्पार के पाररहित संसारनीराकर के० संसाररूप समुह, तेना अंतः के० मध्यनागनेविषे निमऊत् के बुडनारा जे जन के० नविकजनो, तेनने उत्तारे के० उतरवामाटे नौःके नौकारूप, अने तापदानं के० संतापना बेदनने अातन्वती के० करनारी, अने मानस्य के० जे पूजादिक सत्कार, तेनी संसतवा के सना सरखी अथवा सनाज होयना! एवी संसत्वा-यहींयां वा शब्द इव श ब्दार्थी अथवा उत्प्रेदा वाचक जाणवो. ॥३॥ सरनसनतनाकिनारीजनोरोजपीतीलुउत्तारदारस्फुरश्मिसारक मांनोरुदे ॥ परमवसुतरांगजारावसन्नाशितारातिनारा जितेनासि नीदारताराबलदेमदा॥ तणरुचिरुचिरोरुचंचत्सटासंकटोत्कृष्टकं गेटेसंस्थितेनव्यलोकलमंबांऽबिके॥ परमवसुतरांगजारावसन्ना शितारातिनाराजितेनासिनीदारताराबलदेऽमदा ॥ ४ ॥ व्याख्या- हे सरनसनतनाकिनारीजनोरोजपातीलुउत्तारहार स्फुरश्मिसारक मानोरुहे- सरनस के वेगयुक्त एवा, नत के० नमन करनारा जे, नाकि के देवो, तेजनी नारीजन के स्त्रीजन, तेमना जे उरोज के स्तन, तद्रूप जेपी ती के० आसन, तेनेविषे लुग्त् के० सुन करनाराजे तार के० मनोहर एवा हार के० पुष्पहार, तेन्नां स्फुरत् के दैदीप्यमान जे रश्मि के किरणो ते ए करीने सार के० श्रेष्ट बे, क्रमांनोरुह के चरणकमल जेना एवी, अने हेयजि ते के कोइए पण जेने जीती नथी एवी, अने दणरुचिरुचिरोरुचंचत्सटासंकटो त्कृष्टकंगोटे- कृणरुचि के विजली, तेना सरखी रुचिर के मनोहर एवी, अ ने उरु के महोटी जे चंचत् के दैदीप्यमान एवी सटा के जटा, तेणे करीने संकट के अतिशय जरचक एवोजे उत्कृष्ट कंत, तेणे करीने उनट के शूर एवो, बने नासिनीहारतारावलदे-नाति के शोजनशील, एवं जे नीहार केहि म अने तारा के तारामंगल, तेना सरखो वलद के गुचवर्ण एवो, गजारो RAMANANEDIAS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy