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________________ G d शोजनकृतजिनस्तुति चेला एवां घणां कमलो, उरुक्चामर के चंइसरखी ने कांति जेनो एवां चामरो, अने उत्सर्पि के उंचे प्रसारपामनारी जे सालत्रयी के त्रणप्राकार, ते उए करीने सत् के प्रधान एवं, धने अवनमदशोकप्टथ्वीक्षण प्रायशोनानपत्रप्र नागुरु-अवनमत् के वंदन करनारां , अशोकवृद जेनेविषे, अने पृथ्वीक्षण प्राय के पृथ्वीनेविषे उत्साहरूप ले शोना जेनी, एवं जे घातपत्र के बत्र त्रय तेनी जे प्रना के कांती, तेणे करीने गुरु के मोहोटुं, अने परेताहितारोचितंपरेत के नष्ट थया ले अहित के शत्रु जेना, एवा जे पुरूषो, ते एकरीने अ रोचितं के अत्यंत शोनित एवं, अने यशोनातपत्रप्रनायुर्वराराट्परेता हितारोचि तं-यशोनात के० यशेकरीने शोनित एवां जे पत्र के वाहनो, तेनी जे प्रना के कांती, तेने नाके के सेवन करनारा जे उर्वराराट् के नूमिपती, अने परेत के पिशाच देवता, अने यहि के नागदेवता, अने तारा के० नत्र देवताते ए करीने उचित के योग्य एवं वे. ॥ २॥ परमततिमिरोग्रनानुप्रनानूरिनंगैर्गनीरानृशं विश्ववर्येनिकाय्येवि तीर्यात्तरा ॥ मदतिमतिमतेहितेशस्यमानस्यवासंसदाऽतन्वतीताप दानंदधानस्यसाऽमानिनः॥ जननमृतितरांगनिष्पासंसारनीराक रांतर्निमऊऊनोत्तारनौ रतीतीर्थकृत् ॥ मदतिमतिमतेहितेशस्य मानस्यवासंसदातन्वतीतापदानंदधानस्यसामानिनः ॥ ३ ॥ व्याख्या-हे अतन्वतीतापत्-अतनुके ० महोटी अतीत के नष्ठ थएलीने, आ पत्के आपदा जेनाथी एवा, अने हे मतिमतेहितके बुद्धिमान् एवा पुरुषे अनि लषित एवा, हे तीर्थकरके ० देतीर्थकर देव नगवान् ! ईशस्यके समर्थ एवा, अने मते के जिनशासनरूप मतनेविषे हिकेनिश्चये करीने शस्यमानस्यके०प्रशंसा कर वाने योग्य एवो, अने आनंदधानस्यके० आनंदनु केवल स्थान एवो, अने अमा निन के मानरहित एवो, अने न के अमोने सामानिके० प्रियवस्तुने दधानस्य के देनारो एवो जे तुं तेके तारी नारतीके० देशनारूप जे वाणी, साके0 ते वि श्ववर्येके० जगत्नेविषे मुख्य एवा, अने महतिके पीसतालीश लाख योजन वि स्तारयुक्त एवा निकाथ्येके मोक्षरूप घरनेविषे वासंके० वसतीने वितीर्यात्तरांके० समर्पण करो. ते वाणी केवी ? तोके-परमततिमिरोग्रनानुप्रना-परमतके०परशा - Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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