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शोननकृतजिनस्तुतिः बे, तेजके कांति जेनी एवी, अने सदसिनत्के० उत्तम प्रकारनाखड़ने धारण क रनारी, अने कालकांतालकांता-कालके नीलवर्ण, अने कांतके सुंदर अल कांके केशना अपनाग जेना एवी, अने सुरवसुरवधूपूजिता- सुके उत्तम रव के शब्द जेनो, एवी जे सुरवधूके० देवांगनाउ, तेए पूजिता के पूजन क रेली अने अविषमविषनृभूषणा-अविषम के सोम्य, एवो जे विषनृत् के सर्प, ते जे नूषण के० आनरण जेने एवी, अने अनीषणा के नयंकरपणाए रहित, अने नीहीना के नयरहित, अने कुवलयवलयश्यामदेहा-कुवलय के. कमल, तेनुं वलय के जे समूह, तेना सरखो श्यामवर्ण जे देह जेनो एवी, अने अम देहा के नयी मदके गर्वनी वा जेने एवी .॥४॥इतिश्रीपार्श्वनाथ जिनस्तुतिः
अवतरण-हवे महावीर जिननीस्तुति दमकवृत्तेकरीने कहे . नमदमरशिरोरुहस्रस्तसामोदनिर्निमंदारमालारजोरंजितांग्रेध रित्रीकृताऽवनवरतमसंगमोदारतारोदिताऽनंगनार्यावलीलापदेदे दिताऽमोदितादोनवान् ॥ ममवितरतुवीरनिर्वाणशर्माणिजाता वतारोधराधीशसिद्धार्थनाम्निदमालंकृता ॥ वनवरतमसंगमोदा रतारोदिताऽनंगनार्यावलीलापदेदेहितामोदिताऽहोनवान् ॥१॥
व्याख्या-हे नमदमरशिरोरुहस्रस्तसामोदनिर्निमंदारमालारजोरंजिताने| नमत् के० नमस्कार करनारा एवा जे अमर के देव, तेजना जे शिरोरुह के० मस्तकसंबंधी केश, तेथी त्रस्त के गलित, एवी जे सामोद के सुगंधसहित ए वी निर्नि के टपकती एवी मंदारमाला के कल्पवृतना पुष्पोनी जे रज के० पराग तेणे करीने रंजीत के रंगयुक्त ने अंघी के चरण जेना एवा, अने हे ध रित्रीकतावन-धरित्री के पृथ्वी तेनुं कृत के करेलु ने अवन के रहण जेणे एवा, अने हे वरतमसंगम-वरतम के अतिश्रेष्ठ जे, संगम के संगती जेनी | एवा, अने हे असंगमोद के नथी संग के० संसारसंग अने मोद के हर्ष
जेने एवा, अने हे थरत के मैथुनरहित एवा, अने हे अरोदित के रुदन | रहित एवा, अने हे अनंगन-अंगना के हे स्त्रीरहित एवा, अने हे आर्याव के.
श्रेष्ठ पुरुषोनुं रक्षण करनारा, अने हे हित के० हे हितकरनारा हे वीर के० हे | महावीर, लीलापदे के क्रीडानुं स्थान एवा अने क्षणालंकतौ के पृथ्वीनेविषे
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