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शोजनकृतजिनस्तुति.
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व्याख्या-जैनराजी के जिनराज संबंधिनी एवी जे वाक् के देशनारूप वा णी ते हे नव्यजन ! ते के तने मुदं के दर्षने देयात् के आपो. ते जैनराजी केवीले ? तोके-सद्यः के० शीघ्र: असद्योगनित्-असद्योग के० मन, वचन अने काया एननो जे निंद्य व्यापार तेनी नित् के नेद करनारी, अने अमलगमलया अमल के निर्मल एवा जे गम के सरखा पाउना आलावा तेन्नो ले लय के० ध्यान जेथी एवी, अने इनराजीनूता-इन के सूर्य तेउनी जे राजी के श्रेणी, तेणे नूता के स्तवन करेली अने नूतार्थधात्री-नूत के नवीन जे अर्थ, तेने धात्री के धारण करनारी, अनें इह के आ जगत्मध्ये, ततहततमः पातका-तत के विस्तीर्ण एवं, हत के नष्ट कर्तुं . तमःपातक के अझान रूप पातक जेणे एवी, अने अपातकामा के नथी, पात के नरकादिकनेविषे पडवानो काम के० वा जेने एवी, अने शास्त्री के शास्त्रनो डे संबंध जेने एवी, अने नराणां के मनुष्योने शास्त्री के सन्मार्गने शिखवनारी, अने अयशोरोधि का के अपयशने दूर करनारी, अने अबाधिका के कोइए पण जेने गांजी नथी एवी, अने आदेया के सर्व लोकोए ग्रहण करवामाटे योग्य एवी, अने मनुजमनु के मनुष्यना अनुलदे करीने जरा के वृक्षपणाने त्याजयंती के तजावनारीअर्थात् मनुष्य कने वृक्षपणानो त्याग करावनारी, अने जयंती के संपू र्ण परवादीपुरूषोने जीतनारी एवी .॥३॥
यातायातारतेजाःसदसिसदसिनत्कालकांतालकांता ॥ पारिपारिराजंसुरवसुरवधूपूजितारंजितारं ॥ सात्रा सात्रायतांत्वामविषमविपनृभूषणानीषणानी ॥ दीनाऽ
हीनागपत्नीकुवलयवलयश्यामदेदाःमदेदा ॥ ४ ॥ व्याख्या- हे नव्यजन ! सदसि के सनानेविषे अपारं के शत्रुरहित एवो पारिंशराज के अजगरोनो राजा एवो जे अजगर तेकपर याता के आरूढथना री एवी, याके जे अहीनागपत्नी-अदीन के० धरणें, तेनी अयपत्नी के० पट्ट राणी एवी वैरोटया नामक अधिष्ठायक देवी, साके० ते जितारंके जीत्योबे, आ र के शत्रसमूह जेणे एवी, त्वां के तने त्रासात् के० संसाररूपनयथा त्राय तां के रक्षण करो. ते वैरोट्या देवी केवीले ? तोके-तारतेजाः-तारके दैदीप्यमान
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