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शोननकृतजिनस्तुति. सूचित के० उत्तम योग्य एवी जे उमा के कीर्ति, तेणे-करीचित के व्याप्त एवो, बने इह के आनूमिनेविषे अतनुरवः-अतनु के एक योजनपर्यंत श्रवण था यजे, रव के देशनाशब्द जेनो, अने नंदकः के हर्ष नत्पन्न करनारो, अने रु चिररुचिरदः-रुचिरके० मनोहर रुचि के कांति जेन्नी एवा , रद के दंत जेना एवो, अने नोनोदकः के बीजाने दुःख उत्पन्न करनारो नथी एवो.॥१॥
राजीराजीववक्रातरलतरलसत्केतुरंगत्तुरंग ॥ व्याल व्यालग्नयोधाचितरचितरणनीतिहृयातिहरा ॥ सारा साराजिनानामलममलमतेर्बोधिकामाऽधिकामा॥दव्या
दव्याधिकालाननजननजरात्रासमानाऽसमाना॥२॥ व्याख्या-या के जे जिनानां के जिनोनी राजी के श्रेणी, तरलतरलसत्के तुरंगतुरंगव्यालव्यालग्नयोधाऽचितरचितरेण-तरलतर के अत्यंत चंचल एवो जे केतु के ध्वज, तेणे, अने रंगत् के नृत्य करनारा एवा जे तुंरग अने व्याल के मदांध एवो जे गज, तेजनेविषे व्यालय के आरूढ थएला जे यो ध के वीर, तेए करीने आचित के व्याप्त एवं रचित के रचेलं रण के सं ग्राम, तेनेविषे नीतिहृत् के० नयनो नाश करनारी बे; सा के ते, पारात् के शीघ्र अधिकामात्-अधिक के वृद्धि पामेलो जे आम के रोग, तेनाथी अव्या त् के० रहाण करो. ते जिनराजी केवी ? तो के-राजीववा-राजीव के कम लो, तेउना सरखां वक्र के मुखो जेमनां एवी, अने अतिहृद्या के अत्यंत मनोहर. अने सारा के० अतिश्रेष्ठ, अने अमलमतेः-अमल के० स्वबने, मति के बुदि जेमनी एवा जीवोनेकारणे अतं के अत्यंत, बोधिकामा के बोध कर वानी ना धारण करनारी, अने अव्याधिकालाननजननजरात्रासमान-थ के न थी, व्याधी के० पीडा, कालानन के मरण, जनन के जन्म, जरा के० वृक्ष पणु, त्रास के अकस्मात् उत्पन्न थएलो नय अने मान के अनिमान जेने एवी, अने असमाना के अनुपम एवी. ॥ २ ॥
सयोऽसयोगनिवागमलगमलयाजनराजीनराजी॥ नूतानतार्थधात्रीदततहततमःपातकाःपातकामा॥शा स्त्रीशास्त्रीनराणांहृदयहृदयशोरोधिकाबाधिकावाऽ॥दे यादेयान्मुदंतेमनुजमनुजरांत्याजयंतीजयंती ॥ ३ ॥
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