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शोननकृतजिनस्तुति.
Gou श्रयागमत्के० प्राप्त थला हवा; सा के ते अंबा के अंबानामे अधिष्ठायकदे वी. नः के अमारे माटे, असत्के वारंवार, नूतिके ऐश्वर्यने वितनोतुके विस्तार करो. ते अंबादेवी केवी ? तोके-हस्तातंबितचूतचुंबिलतिका-हस्तालंबि त के हस्तनेविषे ग्रहण करेली में चूतचुंबि के० आंबानेविषे लटकनारी एवी लतिका के वेल जेणे एवी, अने वाचा के पोतानी वाणीए रिपुत्रासकृत् केश त्रुनने त्रास नत्पन्न करनारी, अने अर्जुनरुचिः के० सुवर्ण सरखी ले रुचि एटले कांति जेनी एवी,अने उनसविश्वासे के प्रसार पामे अचंचलत्व अक्रूरत्वादिक विश्वास जेनो एवा सिंह के सिंहनेविषे अधिरुढा के धारोहण करनारी, अने वितताम्रपादपरता-वितत के विस्तार पामेलु एवं जे थाम्रपादप के० आम्रपद तेनेविषे रता के प्रीति धारण करनारी अर्थात् महोटा आनदना अधोनागे तेज यांबापरथी नीचे लटकनारी वेलीने धारण करीने सिंहने विषे बेसनारी एवी, अने चारिपुत्रा-चारि के निरंतर संचार करवानो स्वनावडे जेमनो एवा ने पुत्र जेना एवी. ॥ ४ ॥ इति श्री नेमिनाथ जिनस्तुतिः संपूर्णा ॥ २२ ॥ ७ ॥
अवतरण-दवे पार्श्वनाथजिननी स्तुति स्रग्धरावृत्ते करीने कहेले. मालामालानबादुर्दधदधदरंयामुदारामुदाराल्लीनाऽलीनामिदाली मधुरमधुरसासूचितोमाचितोमा ॥पातात्पातात्सपाोरुचिररुचिर दोदेवराजीवराजी॥पत्राऽपत्रायदीयातनुरतनुरवोनंदकोनोदकोनो॥२॥ व्याख्या-यदीया के जे पार्श्वनाथ जिननी तनुः के० मूर्ति, देवराजीवराजीप त्रा-देव के देवोए रचेली जे राजीवराजी के कमलोनी श्रेणी ते पत्र के वाहन जेनु, थपत्रा के० आपत्तिथी रक्षण करनारी एवी, एवो सः के ते पार्थ के पार्श्वनाथजिन, मा के मुजने पातात् के नरकादिकनेविषे जे पात, तेथी पातात के रक्षण करो. ते पार्श्वनाथ केवो? तो के-घालानबादः-या लान के हस्तिबंधन करवानो स्तंन, तेना सरखा पुष्ठ डे बादु जेना एवो, अने यां के जे मालाने नदारा के मोहोटी अने मधुरमधुररसा-मधुर के रस युक्त एवं जे मधु के मकरंद तेविषे जे रस के अनिरूचि जेने एवीअलीनां के व्र मराउनी थाली के० श्रेणी, ते मुदा के हर्षेकरीने बारात् के समीपनागनेविषे वरं के अत्यंत, लीना के आसक्त होती थकी अदधत् के पुंष्परसने प्राशन करती हवी; एवीमाला के पुष्पमालाने दधत के धारण करनारो,अने सूचितोमाचितः
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