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________________ ८०४ शोभनकृत जिनस्तुति. ७ सारनूत एवं जे तेज ते, सर्वतएव के० सर्व दिशाउने विषेज दधावके० प्रसार पाम तुं द. साके० ते जितराजकाके० जेणे राजसमूह जीत्योबे एवी, अने संसारम होदधावपिके० संसारसमुड्ने विषे पण हिताके हितकारक एवी ने शास्त्री के० जनोने देशनानु शासन करनारी एवी, जिनानां के० जिनोनी राजी के ० श्रेणी जे, ते नः के० अमारा नवायासंके० संसाररूप क्लेशने हरतुके० हरणकरो. कुर्वाणाऽपदार्थदर्शनवशास्वत्प्रनायास्त्रपा ॥ मानत्याजनकृत्तमोदरतमेशस्तादरिपोदिका ॥ अ कोन्यातवभारती जनपते प्रोन्मादिनांवादिनां ॥ मा नत्याजनकृत्तमोहरत मेशस्तादरिशेदिका ॥ ३ ॥ ० व्याख्या - हे तमोहरतम के० यज्ञानने अत्यंत हरण करनारा, यने हे ईशके ० हे नियमन करनारा ! ने हे जनकत्तमोहरत - जन के० लोक, तेस्रोनुं कृत्त के‍ निराकरण कटुंबे, मोह के मूढपण, घने रत के० मैथुन जेणे; एवा है जिनपते के० हे जिनेश्वर, तव के० ताहारी जारती के० देशनारूप वाली, मे के० मारा, अ रिशेहिका के० शत्रूनो शेह करनारी अर्थात् नाश करनारी स्तात् के० था. तेवा एकेवी बे ? तोके--अणुपदार्थदर्शनवशात्- अणुके. सूक्ष्म जे जीवाजीवादिक नवपदार्थ, तेना दर्शनवशात् के० अवलोकन योगेकरीने नास्वत्प्रनायाः के० सूर्यनी कांती पां के लाप्रत्ये कुर्वाणा के उत्पन्न करनारी, खने रास्ता के० प्रश स्तने दरिशेहिक - खदरि के० महोटो से कह के० विचार जेने विषे एवी, ० ने होच्या के० कोइथी पण दोन न पामनारी, यने प्रोन्मादिनां के० प्रकर्षे करीने उत्पन्न यो बे उन्माद के० दर्प जेउने एवा, वादिनां के० परवादी पुरुषो नुं मानव्याजनक मान के० खनिमान तेनुंजे, त्याजन के० मोक्षण करनारीबे. दस्तालंवितचतचं बिलतिकायस्याजनोऽन्यागमत् ॥ वि श्वासेविततां पादपरतांवाचारिपुत्रासकृत् ॥ सानू तिंवितनोतुनोर्जुनरुचिः सिंदेऽधिरूढोल्लास ॥ विश्वा सेवितताम्रपादपरतांवाचारिपुत्राऽसकृत् ॥ ४ ॥ व्याख्या-- यस्याः के० जे अंबानामक देवीना, विश्वासेवितताम्रपादपरतां - विश्व के त्रिभुवन, तेणे खासेवित के० अत्यंत सेवन करेला एवा खने ताम्रके० यार क्त एवा जे पादके चरण, तेना परतांके शरणपणाने जनः के० जे लोक ते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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