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शोननकृतजिनस्तुति.
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के संताप जेणे, एवा श्री कुंथुनाथाय के कुंथुनाथ नामक जिनेश्वरने मम || के मारा नमः के नमस्कार, नवतु के था. ॥ १ ॥
सकलजिनपतिन्यःपावनेभ्योनमःस ॥नयनरवर देन्यःसारवादस्तुतेभ्यः॥ समधिगतनुतिन्योदेववृं
दाजरीयो॥ नयनरवरदेन्यःसारवादस्तुतेभ्यः॥२॥ व्याख्या-तेन्यः के ते, सकलजिनपतिन्यः के संपूर्ण एवा तीर्थकरोने मा हरो नमः के० नमस्कार, अस्तु के था. ते जिनपति केवाजे? तो के-पावनेच्यः के० पवित्र, अने सन्नयनरवरदेन्यः-सत्के० उत्तमप्रकारनां ने, नयन के नेत्रो, रवके० धर्मदेशना शब्द, अने रदके दंत जेमना एवा, अने सारवादस्तुतेभ्यःसार के नुत्तम ले, वाद के वचन जेमनां, एवा पुरषोए स्तुतेन्यः के स्तवन क रेला, अने गरीयोनयनरवरदेन्यः-गरीय के० मोहोटो बे,नय के० नैगमादिक नय नुझान जेने, एवा नरके मनुष्योने माटे वरदेन्यः के० वर देनारा, अने सारवात् के स्तुति शब्द युक्त एवा, देववंदात् के देवसमुदायथी, समधिगतनुतिन्यः के० प्राप्त थएली ने स्तुति जेने, एवा . ॥ २॥
स्मरतविगतमुजैनचंचकास॥त्कविपदगमनंगदेतुदंतंकृतांतं ॥ घिरदमिवसमुद्यदानमार्गधुताऽधै॥ कविपदगमनंगहेतुदंतंकृतांतं ॥३॥ व्याख्या-हे जनो, यूयंके तमे, जैनचंई के जिनेश्वरसंबंधी, कृतांत के सि दांतने, रिदमिव के हस्तिनी साम्यताए स्मरत के स्मरण करो. ते जिनसि दांत अने दस्ति केवाजे? ते क्रमे करी कहे . विगतमुई-विगतके गयुं , मुझके० प्रमाण जे, एटले अत्यंत विशाल, एवो. तेमज गजपण अत्यंत विशाल,थने चका | सत्कविपदगमनंगं-चकासतके शोनायमान , कविपदानि के पंमितोए सन्मान करवाने योग्य एवा शब्द गमके सरखा पाठोना आलावा,अने नंग के रचना जेने विषे एवो तेमज-गजपके-शोनायमान अने पंमितोए सन्मान करवाने योग्य ने; पद गमनंग के० पायना चालवानी रचना जेनेविषे एवो-अने कृतांतंतुदंतं के मृ त्युने टालनारो-गजपदे-कृतांत के कस्यो बे, पोताना प्रनुनो अंत के० सैन्यादि कोनो नाश जेणे, एवा जे कृतांतंके यमतुल्य एवा पण शत्रुने यु-चने वेषे तुदंतं के व्यथा उत्पन्न करनारो, अर्थात्-मारनारो-अने समुद्यदानमार्ग -समुद्यत् के० दैदीप्यमान , दानमार्ग के दाननो क्रम जेनेविषे एवो-गजपदे, दैदीप्यमान
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