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शोभन कृत जिनस्तुति.
कमल निकलयन्सब्रह्मशांतिःक्रियात् ॥ सं त्यज्यानिशमीक्षणेनशमिनोमुक्ताक्तमालीदितं ॥ तप्ताष्टापदपिंगपिंगलरुचिर्योऽधारयन्मूढतां ॥ संत्य ज्यानिशमीक्षणेनशमिनोमुक्ता मालीदितं ॥ ४ ॥
व्याख्या - यः ब्रह्मशांतिः के० जे ब्रह्मशांति नामक यदेव, शमिनः के० उप शमयुक्त एवा कोण मुनिने प्रनिशं के० निरंतर ईकोन के पोताना अवलो कने करीने, मूढतां के० मूर्खपणाने, संत्यज्य के दूर करीने, ते मुक्कामाली हितं - मुक्त के० त्यागी, क्षमा के० क्रूरता जेणे. एवा जे यति, तेमनी जे या ली के० श्रेणी, तेने पण, ईहित के इति, एवा हितं के० मोहरूप हितने धारयत् के० धारण करतो हवो; सः के० ते ब्रह्मशांति नामक यक्ष, दोन के० वेगेकरीने शं के० सुखने क्रियात् के० करो. ते ब्रह्मशांति यक्ष केवोबे ? तो के - संति के० उत्तम ने अज्य के० नवीन एवा दंत्रक मंजूनि दंग के ० रत्नमय दंग, छत्र के० सुवर्णनुं छत्र, यने कमंगलू के० पाणीए नरेलुं कर्मफलएउने कलयन के ० धारण करनारो, घने शमी के० उपशमे युक्त, ने इन के० श्रेष्ठ यने मुक्कामानी के० मोतीउनी बे जपमाला जेनी एवो, यने तप्ताष्टापद पिंपिंग रुचिः तप्त ० तपेलो जे अष्टापदपिंग के० सुवर्णपिंक, तेना सरखी पिंगल के पीतवर्ण ले रुचि के० कांती जेनी एवोबे ॥ ४ ॥ इति श्री शांति जिनः स्तुति अवतरण - हवे श्री कुंथुनाथनीस्तुति मालिनीवृत्तेकरी ने कहेले. नवतुममनमः श्रीकुंथुनाथायतस्मा ॥ यमितशमितमोदा यामितापायहृद्यः ॥ सकलनरत नर्तानूजिनोप्यक्ष पाशा ॥ यमितशमितमोदायामितापायहृद्यः ॥ १ ॥
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व्याख्या - यः के० जे कुंथुनाथ भगवान्, हृद के० मनोहर, अने सकलनरत नर्ता के संपूर्ण जरत क्षेत्रनो धणी एवो, जिनोषि के जिन बतां पण अमिता पायहृत् - अमित के पारविनाना जे पाय के० क्लेश, तेजनो हत्के० हरण करनारो
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नूत् के० होतो हवो तस्मै के० ते, अपाशाय मितशमित मोहाय - द पाश, के० इंडियरूप जे पाश तेजए करीने यायमित के० प्रबल एवो शमित के० समाव्योबे, मोह के मोहरूप कर्मनो यायामि के० विस्तार पामनारो, ताप
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