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________________ शोननकृतजिनस्तुति. जए व्याख्या-येके० जे जिनश्रेष्ठ, प्राप्तलोकत्रयीराज्याः के० प्राप्त थयुं त्रैलोक्यनुं राज्य जेने, एवं बता पण ईषदपि के किंचित पण, नमेः के मदने न स्वीकारता हवा, ते जिनषाः के ते जिनश्रेष्ट, जीयासुः के जयवंत था. ते केवा ? तोके, अविदिषः के जेमने शत्रुनथी एवा, अने रजोराज्यामेरपारिजातसुमनः | संतानकांतां-- रजके पराग, तेनी जे राजी के श्रेणी, तेणे करीने मेछुर के पु ष्ट एवा जे पारिजातसुमनःसंतान के कल्पवृदोना पुष्पोनो समुदाय, तेउए करीने कांतके मनोहर एवी, मालां के पुष्पमालाने दधाना के धारणकरनारा, अने कुंदसमत्विषा के कुंदपुष्पसरवी श्वेतवर्ण जेनी कांती, एवी कीया के कीर्तिए चिता के व्याप्त, अने अपारिजातसुमनःकांतांचिताः-अपके नष्ट थयो, अरि जातके शत्रुसमूह जेथी, एवा जे सुमनस के देव अथवा पंमित, तेनो जे संता न के० समुदाय, तेमनो जे कांतके मस्तकप्रांत अथवा कांता के स्त्रीच, तेमणे थंचित के पूजित, एवाडे. एमां मस्तक पदे अंचितके वंदन करेला, एवं समजवु. जैनेंमतमातनोतुसततंसम्यकदृशांसजणा॥ लीलानंगमदा रिनिन्नमदनंतापापहृद्यामरं ॥ जर्निर्नेदनिरंतरांतरतमोनिर्ना शिपर्युल्लस॥ लीलानंगमहारिनिन्नमदनंतापापहृद्यामरं ॥ ३॥ व्याख्याः-जैनें के जिनेंसंबंधी एवं मतं के सिद्धांतरूप जे मत ते, स म्यदृशांके० सम्यदृष्टिपुरूषोने सशुपालीलानं के० नत्तमगुणोनी जे श्रेणी, तेना जानने, सततं के निरंतर, यातनोतु के विस्तारकरो. ते मत केवुले? तोके-गम हारि-गमके समानपाना बालावा तेए करीने हारि के मनोहर, अने निन्नमद नं के० नेदन कखोने मदन जेणे एवं, अने तापापहत् के संसारसंबंधी तापनो नाश करनारूं, यने यामरं- यामके महाव्रत, तेने र के देनारूं, अने उनिनंद निरंतरांतरतमोनिर्नाशि-मुनिर्नेद के नेदन करवामाटे अयोग्य,अने निरंतर के निविड एवं जे आंतरतम के मनथी उत्पन्न थएटुं मोहरूप तम, तेनो निर्नाशि के थत्यंतनाश करनारूं, अने पर्युलसन्नीलानंगमहारिनित्-पर्युनसत् के अति शय लीला के विलास जेउनो एवा, अने अनंग के न नाश पामनारा एवा जे महारि के० महोटा शत्रु, तेउनु नित् के नेदन करनारूं, अने नमदनंतापापहृद्या मरं-नमत् के वंदन करनाराजे, अनंत के असंख्य, अपाप के निष्पाप, अने | हृद्य के मनोहर, एवा अमर के देव जेने, एबुंडेः ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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