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________________ शोननकृतजिनस्तुति. DI परमतापदमानसजन्मनःप्रियपदंनवतोनवतोऽवतात् ॥ जिनपतेर्मतमस्तजगत्रयी परमतापदमानसजन्मनः॥३॥ व्याख्या-हे नव्यजन ! अस्तजगत्रयीपरमतापदमानसजन्मनः-अस्त के वि ध्वस्त कस्यो बे, जगत्रयीपरमतापद के त्रैलोक्यने परम ताप देनारो एवो, मा नसजन्मा के० चित्तने विषे उत्पन्न थनारो मदन जेणे, एवा जिनपतेः के० जि नेश्वरनु, मतं के सिद्धांतरूप मत, ते जवतः के तुं जे तेने, नवतः के० संसा रथी, यवतात् के रक्षण करो. ते मत के ? तोके-परमतापत-परमत के बौछादिक मत, तेनी आपत् के० विपत्ति जेथी,अर्थात् बौक्षादिकोना मतनुं खेमन करनालं, अने थमानसजन्मनःप्रियपदं-अमान के संख्या रहित एटले जे गण तीमां न आवे, अने सजन् के परस्पर मलनारां, अने मनःप्रिय के० पंमितोना मनने प्रियकारक एवां ने, पदके० पदो जेनेविषे, एवं ले ॥ ३ ॥ रसितमुच्चतुरंगमनायकं दिशतुकांचनकांतिरिताच्युता॥धृत धनुःफलकासिशराकरै रसितमुच्चतुरंगमनायकं ॥ ४ ॥ व्याख्या-थच्युता के अच्युता नामे जे अधिष्ठायक देवी, ते कंके० सुखने दिशतु के समर्पण करो. ते अच्युता देवी केवी जे? तोके-गमनाय के चालवा माटे अञ्चतुरं के अत्यंत चतुर, अने रसितं के हाहणाट शब्द करनारा, अने असितं के नीलवर्ण एवा, उच्चतुरंगमनायकं के अश्वश्रेष्ट प्रत्ये इता के था रोहण करनारी, अने करैः के पोताना हाथे करीने धृतधनुःफलकासिशराधृत के० धारण कयां , धनुः के० धनुष्य, फलक के खेटक नामा आयुध, य सि के खडु अने शर के बाण जेणे, अने कनककांतिः-कनक के सुवर्ण, तेना सरखी जेनी कांति जे; एवी जे. ॥ ॥ इति श्री अनंतजिनस्तुतिः संपूर्णा अवतरण-हवे श्रीधर्मनाथ जननीस्तुति अनुष्टुपतृत्त करीने कहे . नमःश्रीधर्मनिष्कर्मोदयायमहितायते ॥ मामरेंजनागें दयायमहितायत॥२॥ व्याख्या-मामरेइनागेंः-मर्त्य के मनुष्य, अमरेंड के देवेंइ, बने नागें के पातालवासी देव, तेउए महितायते-महित के पूजित ने, आयति के उ तरकाल प्रजुता जेनी, एवा हे श्रीधर्म के श्रीधर्मनाथ तीर्थकर, निष्कर्मोदयाय-नि - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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