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शोननकृतजिनस्तुति.
IGI तेजले,वसुकेण्डव्य जेनुं एवी,थने अनीमना के जयरहितले मन जेनें एवी,अने सना दमालाके०कांतियुक्त बदमालाके०जपमाला जेनी एवी,अने प्रनाजितनुता-प्रना केन्ते देवीनी कांतीए जे जितके जीतेला जे लोक,ते ए नुता के स्तुती करेली,अने परमचापला-परम के उत्कृष्ट एवं जे चापके० धनुष्य, तेने ग्रहण करनारी, अ ने सुधावसुरनीके ० महोटावेगे करीने दोडनारी जे सुरनिके० कामधेनु, ते प्रत्ये या रोहिणीके ० श्रारोहण करनारी, अने अनामयिसना-थामयके रोग, तेणे रहित एवी सनाके पर्षदा जेनी एवीजे. ॥४॥ इति विमलजिनस्तुतिः संपूर्णा ॥५॥
अबतरण-हवेश्री अनंतजिननाथनी स्तुति, द्रुतविलंबित वृत्तेकरीने कहेले. सकलधौतसदासनमेरव ॥ स्तवदिशंत्यनिषेकजलाप्लवाः॥म
तमनंतजितःस्नपितोल्लसत्॥सकलधौतसहासनमेरवः॥१॥ ___ व्याख्या-हे नव्यजन, सकलधौतसहासनमेरवः-सकल के संपूर्ण, धौत के दालन कयुंडे, सहास के सप्रकाश-अर्थात् पुष्पादिकोए विकसित एवं नमेरु के देवताउनुं वृद जेणे एवो, अने स्नपितोनसत्सकलधौतसहासनमे रवः-स्त्रपित के० स्नान कराव्युं डे, उनसत् के दैदीप्यमान, सकलधौत के सुवर्णसहित, अने सहासन के अनिषेक माटे जे सिंहासन, तेणे सहित, एवा मेरुके मेरुपर्वत जेणे, एवा अनंतजिन के श्रीअनंतजिननाथनो अनिषेक ज ताप्लवाः के मेरुपर्वत उपर जन्मानिषेक करवामाटे प्राप्त थएलो जे नदकनो प्र वाह, ते तवके० तमारा, मतं के मनोवांहितने, दिशंतु के आपो. ॥ १ ॥
ममरतामरसेविततेहण प्रदनिहंतुजिनेकदंबक ॥ व
रदपादयुगंगतमझता ममरतामरसेविततेदाण ॥२॥ व्याख्या-रत के प्रीतिए तत्पर एवा जे अमर के देवो, तेए सेवित के सेवन करेला, एवा हे रतामरसेवित! अने दण के० महोत्साह, तेने प्रद के उत्तम प्रकारे करीने देनारा, एवाहे क्षणप्रद ! अने वर देनारा एवा हे वरद यने वितत के विस्तीर्ण ने नेत्रो जेनां, एवा हे वितेक्षण! हे जिनेकदंबक के हे जिनेइसमूह, ते के तमारु, अमरतामरसे-अमरके देव, तेनए मांझलां जे ता मरस के कमलो, तेनेविषे गतं के० प्राप्त एवं पादयुगं के चरणयुगुल, ते मम के० मारा, अज्ञता के अज्ञानीपणाने निरंतु के संहार करो. एटले नाश करो.
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