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________________ शोजन कृत जिन स्तुति.. 0 कर्म के कर्मरहित, एवा मोनोबे उदय के० प्राप्ति जेथी, एटले मोक्षदायक एवा ने दयायमहिताय - दया के० जीवदया, घने यम के व्रत, तेना हिताय के० हितकारक - एटले जीवदया ने पांचमहाव्रतादिकोनी प्रसिद्धि करनारा एवा ते के० तारा माटे, नमः के० नमस्कार था ॥ १ ॥ जीयाजिनौघोध्वांतांतं ततानलसमानया ॥ नामंगल त्विषायः स ततानलसमानया ॥ २ ॥ 0 व्याख्या - यः के०जे जिनोनो समुदाय, ततानलसमानया - तत के० विस्तीर्ण एवो केमि तेना सरखी लसमानया के० दैदीप्यमान एवा, जामंमलत्विषा के० कांती मंजना समुदाये करीने, ध्वांतांत के प्रज्ञानना नाशने, ततानके करतो हवो; सः किनौघः के० ते जिनसमूह, जीयात् के० जगत्ने विषे जयवंत या ॥२॥ भारतिशजिनेंषाणां नवनौरक्षतारिके ॥ सं 0 सारांनो निधावस्मानवनौरक्षतारिके ॥ ३ ॥ व्याख्या- तारिकेत के० नथी नाश पाम्या, खरि के० शत्रु जेने वि पे, एवा संसारांनोनिधौ के० संसाररूप समुड्नेविषे, नवनौः के० नवीन नौका रूप थने, तारि के तारनारी, एवी हे जिनेंझलांनारति के० हे जिनेंोना पांत्री शगुणोएयुक्त एवी वाणी ! तुं वनों के० या भूमिनेविषे, अस्मान् के० अमोने शक् के शीघ्र, रक्ष के रक्षण कर. ॥ ३ ॥ ० के किस्थावः क्रियाञ्चक्ति करालामानयाचिता ॥ प्रज्ञप्तिर्नूतनांभोज करालाचानयाचिता ॥ ४ ॥ व्याख्या - प्रज्ञप्ति के० प्रज्ञप्ति नामे जे अधिष्ठायक देवी, ते वः के० तमारा जा जान के० लानने, क्रियात् के० करो. ते प्रज्ञप्ति देवी केवीले ? तो के, के किस्थाके कि के० मोर, तेना ऊपर आरोहण करनारी, घने शक्तिकरा के० शक्ति नामे प्रायुध जेना दस्तने विषेडे एवी, खने याचिता के० - कोइए पण याचना न क रेल बतां देनारी, ने नूतनांनोजराजाना-- नूतन के० नवीन जे थंनोज के० कमल, तेना सरख कराल के० उत्कृष्टले खाना के० कांती जेनी, खने नयाचिता के० न्यायेकरी व्याप्त एवीजे ॥ ४ ॥ इति श्रीधर्मजिनस्तुतिः संपूर्णा ॥ १५ ॥ अवतरण - हवे श्रीशांतिनाथ जिननी स्तुति शार्दुलविक्रीडितवृत्तेकरी ने कहे बे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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