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शोननकृतजिनस्तुति.
___ व्याख्या-इहनुविके आनूमिनेविषे, घनरुचिः के० मेघना सरखी जेनी कांति ने: एवी अने- गुरुतराविहतामरसंगता- गुरुतर के अतिमहांत, अने अविहत के बीजा देवोए, अपराजित एवाजे अमर के देव, तेए संगतके सहित ए वी, एने अस्त्रवरेके प्रधानशस्वरूप एवा, फलपत्रनारगुरुतरो-फलो अने पत्रो, एनने धारण करना जे महाद, तेनेविषे सतकराके कस्यो ने हस्त जेणे एवी, एटले फलो अने पत्रो-एनएयुक्त एवं एक महारद जेणे पोताना हस्तनेविषे शस्त्ररूपे करीने धारण कडे, एवी अने तामरसंके यारक्तकमलनपर गता के आरूढ थएली, एवीजे मानवीकें मानवी नामे अधिष्ठायक देवी ते, जयता त् के जयपामो. ॥ ४ ॥ इति शीतलजिनस्ततिः संपूर्णा ॥ ४० ॥
अवतरणः-हवे श्री श्रेयांस जिननी स्तुति हरिणीवृत्ते करीने कहेले. कुसुमधनुषायस्मादन्यंनमोहवशंव्यधुः । कमलसदृशां गीतारावाबलादयि तापितं ॥ प्रणमततरांजाश्रेयांसन
चाहृतयन्मनः॥कमलसदृशांगीतारावाबलादयितापितं ॥१॥ व्याख्याः-अयिके कोमलपणे कटुंबं के हेजनो! अलसदृशांके० कामातुर पणे स्थिरदृष्टि एवी स्त्रीना, गीतारावाः के गायनरूप जे शब्दो, ते यस्मात् के जे श्री श्रेयांसथी, अन्यं के बीजा एवा कंके कोण हरिहरादिक देवने बलात्के । बलात्कारे करीने, कुसुमधनुषाके० कामदेवे, तापितंके० पीडित, वाके अथवा, मोहवशंके० मोहाधीन एवा नव्यधुः के० न करताहवा; तो सर्वेजनोने मदने पी डित अने मोहाधीनज करताहवा. परंतु यन्मनः के जे श्री श्रेयांसनाथना मनने कमलसदृशांगोके कमलसरडे अंगके शरीरजेनुं एवी, अने तारके मनोहर एवी, अने अबला के० बीजाने काममोहित करवामाटे जेना करतां बल नथी; एवी दयिता के स्त्रीपण नाहत के न हरण करती हवी; तके ते श्रेयांसके श्री श्रेयांसनामे जिनेश्वरने तमे शक के शीघ्र प्रणमत के अतिप्रेमेवंदन करो. एटले तेहनी कृपाए तमोने पण कामादिकनो जय मुलन थशे एवो नावार्थ. ॥१॥
जिनवरततिर्जीवालीनामकारणवत्सला ॥ समदमदितामा रादिष्टासमानवराजया ॥ नमदमृतनुपंक्त्यानूतातनोतु
मतिममा ॥ समदमहितामारादिष्टासमानवराजया ॥२॥ व्याख्या-जिनवरततिः के जिनेश्वरनी जे श्रेणी ते, ममके हुँ जे तेने, थ
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