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शोननकृतजिनस्तुति. सना जेनेविषे, एवं अने अलंघनं के० कोइए पण जेनुं उल्लंघन कहुं नथी एवं डे. एटले देवोए वंदित अने कोइए पण निघन करवाने अयोग्य अने निविड, एवा नवसंख्यांक कमलसमूहनेविषे स्पर्श करीने संचार करनालं जे शीतल नाम क तीर्थकरनुं चरणकमल, ते निरंतर जय पामे ले. एवो नावार्थ ॥१॥
स्मरजिनान्परिनुन्नजरारजो जननतानवतोदयमानतः॥
परमनिर्टत्तिशर्मकृतोयतो जननतानवतोदयमानतः॥२॥ व्याख्या-हेजन के० हे लोक! यतः के० जे कारणमाटे ते जिन, परम नि तिशर्मकतः-परम के उत्कृष्ट जे निर्वतिरार्म के मोदसुख, तेने कृतः के उत्पन्न करनारा अने, नतान्के नम्र, एवा, पुरुषोने, अवतःके रहए, करनारा ने: यतः के ए कारणमाटे तुं. अदयं के शरीरनी अपेक्षारहित जेवीरीते था य तेम, आनतःके० नम्र होतो थको ते, परिनुन्नजरारजोजननतानवतोदयमानपरिनुन्न के० दूर कस्वां डे, जरा के वृक्षावस्था, रज के कर्मरूप रज, जननता। नव के जन्मथी उत्पन्न थनारूं कशपणु, तोद के पीडा अने यमके० मत्यु जेणे, एवा जिनान् के तीर्थकरने स्मर के स्मरण कर. ॥ २ ॥
जयतिकल्पितकल्पतरूपमं मतमसारतरागमदारिणा ॥
प्रथितमत्रजिनेनमनीषिणा मतमसारतरागमदारिणा॥३॥ व्याख्या-पत्रके थानूमिनेविषे, थतमसाके० अज्ञानरहित एवा,यने रतरा गमदारिणा-रतके ० मैथुन, रागकें० राग देष अने मदके थाउमद, एन्नाथ |रिके शत्रु एवा, अने असारतरागमदारिणा- असारतके अत्यंत असार एवा जे आगमके० मिथ्यात्वरूपसिद्धांत, तेउने दारिणा के० खेमन करनारा एवा जि नेनके श्रीजिनेश्वरे, मनीषिणांके पंमितपुरूषोने अर्थात् पंमितोना अग्रनागे, प्रथितंके अर्थ व्याख्याने करीने विस्तारकरेलु, अने कल्पितकल्पतरूपमं- सर्वना मनोरथ पूर्णकरवा ए हेतूए कल्पितके संपादन करीने, कल्पतरूनी के क ल्पवृदनी उपमाके साम्य जेणे, एबुं जे मतंके सिद्धांतरूप मत, ते जयतिके सर्वोत्कर्षे करीने वले. ॥ ३ ॥
घनरुचियता विमानवी गुरुतराविहतामरसंगता॥ कृतक रास्त्रवरेफलपत्रना ग्गुरुतराविदतामरसंगता ॥४॥४०॥
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