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________________ G वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. ए नही.” तेमने समजाववा माटे बीजो ढाल पूजानो कहेले. तेनी प्रथम गाथा: महाविदेह क्षेत्र सोहामधुं ॥ एदेशी ॥ तुज आणा मुज मनवसी ॥ जिहां जिनप्रतिमा सुविचार || लालरे ॥ रायप सेषी सूत्रमां ॥ सूरि तणो अधिकार || लालरे ॥ तुज ॥ १ ॥ अर्थः- तुजप्राणाके ० तमारी जे खाज्ञा, प्रस्तावयी वीरनी जे खाज्ञा ते, मुज मन वसीके ० महारा चित्तनेविषे रही. एटले श्रीजिनशासनमांहे खाज्ञाए धर्मले पण प्राज्ञायामां युक्ति न करवी एम देखाड्युं. ते खाज्ञा केवीबे ? जिहां जिनप्रतिमा सुविचारके० जे याज्ञामां जिनमुानो नजो विचारले तेहिज यागम साखे देखा डेवे रायपसेणी सूत्रमांके० रायपसेलानामे बीजुं उपांग; तेमां सूरियानतणो श्र धिकारके० सूर्याजनामे देवता, जे परदेशी राजानो जीव प्रथम देवलोके उपन्या तेनो अधिकार विस्तारे; एटले ए अर्थ जे, सूर्यान देवताए प्रतिमानी पूजा करी, तेनो विस्तारे अधिकारले. इतिनाव इति प्रथम गाथार्थ ॥ १ ॥ ते हिज विस्तारे देखा डेबे. ते सुरभिनव उपन्यो || पुबे सामानिक देव ॥ लालरे ॥ शुं मु ज पूरव ने पी ॥ हितकारी कहो ततखेव ॥ लालरे ॥ तु ॥ २ ॥ अर्थः- ते सुरके ० ते देवता अभिनव उपन्योके० नवो जेवारे उपन्यो तेवारे पूढे सामानिकदेवके० सामानिक जे पोताने सरखी कविना धणी ते देवताउने पू. गुं मुज पूरव ने पढी हितकारी के महारे पूर्वे ने पी हितकारी या वि मानमां चुंबे ! ते कहो ततखेवके० तत्काल कहो. इति द्वितीय गाथार्थ ॥ २ ॥ ० ते कहे एह विमानमां ॥ जिनपडिमा दाढा जेह ॥ लालरे ॥ तेनी तमे पूजा करो ॥ पूर्व पचादित एद ॥ लालरे ॥ तु० ||३|| 0 अर्थः- ते कहेके हवे ते देवता उत्तर कहेबे जे, एह विमानमांके० एहनुं या प्रत्यक्ष विमान, तेहमां, जिनपडिमा दाढा जेहके० जिनेश्वरनी प्रतिमाले; तथा जिनेश्वरनी दाढा जे बे, तेनी तमे पूजा करो. इतिस्पष्टं ॥ पूरव पचादि त के पूर्वे तथा पी, जिन प्रतिमा तथा जिन दाढा ए बे वस्तुनी पूजा, तेज हितकारी. एरीते सामानिक देवताए उत्तर वाल्यो. इति तृतीय गाथार्थ ॥ ३ ॥ ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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