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________________ वीरस्तुतिरूप ढुंडीनुं स्तवन. यहियां जिनदाढा शब्दे जिनास्ति जाणवां. अन्यथा सूर्याजदेवना विमा विषे जिनदाढा नवे नही. जे कारण माटे, एक सौधर्मेइ, बीजो ईशानें, त्रीजो चमरें, घने चोथो बली, ए चारे इंइनेज दाढा लेवानो अधिकार बे, एटला माटे जंबुद्वीप पन्नत्तीनी वृत्तिमां शांतिचं उपाध्यायजीए जिनसकहा शब्द ॥ जिना स्थिनी ॥ एवं लख्युंबे. जेम हिंयां रायप सेषीमां पण ॥ सकहा ॥ एवोज पाठ बे; तेमाटे दाढा शब्दे अस्थि कहिए. इतिनाव तथा पूर्व पञ्चानो अर्थ पोतेज अनेक रीते करशे; माटे मे नयी लख्यो. यूए एत्रण गाथा कही तेमां सूत्र पाठ हतो, ते प्रमाणे गाथामा अर्थ बांध्यो. तथाचतत्सूत्रं ॥ तरणं तस्स सूरियानस्स देवस्स पंचविहार पवत्तिए पवत्ति ना वंगयस्स समाणस्स इमेयारुवे वडिए पडिए मलोगए संकप्पे समुप्प किवा किमे वें कर? किंपा करणिवं. किंमेपुविसेयं. किंमेपवासेयं. किंमेपुंविं पचाविहि याए सुहाए खमाए पिसेसाए श्रणुगामियत्ताए नविस्सद् तपणं तस्स सूरियान रसदेवस्स सामायि परिसोववागादेवा सूरियाजस्त इमेयारूवं ज्ञयं समु प्पन्नं समनिका णित्ता जेणेव सूरियानेदेवे तेणेव नवागच्छंति सूरियानंदेवं करय ल परिगाहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्रए अंजलं कटु जएणं विजएणं वावे वा वेत्ता एवंव्यासी एवं खलु देवाणुप्पियाएं सूरियाने विमाणे सिद्धायतले जिएपडिमा पं जिस्सेह प्यमाणं मेत्ता एं सहसयंसन्निखित्ताणं चि इ सना एवं सुहमा एवं मालवए चेश्यखने व रामएस गोलवट्ट समुग्गएसु बहु जिएस्सक हाउ सन्निखित्ताचिति ताणं देवाप्पिएयाणं श्रन्ने सयं बहुणं वेमाणियाणं देवालय देवीणय प्रचलिया जावबुवासाि तयणं देवाप्पियाणं पुविकरपिवं एयणं देवापुप्पि या पचाकरविं एयणं देवाप्पिया पुद्विपचावि हियाए सुहाए खमाए नि सागामियताएं नविस्स ॥ इति रायपसेणीउपांगे ॥ प्रस्यार्थः - तएतस्स सूरियाजस्सदेवरसके. तेवारे ते सुरियान देवताने, पंचविहार पबत्तीए पवत्तीनाव गयस्स समाएरसके० पांच प्रकारनी पर्यातिए पर्याप्तनाव पाम्या थकाने एटले देवताने नाषा ने मन ए बे पर्याप्तिसाथे नीपजेबे, माटे पांच कही. इमेयारूवैके एवा प्रकारनो बिए पबिएके० मनमां प्रार्थ्यो मलोगए संकप्पे समुप बिके। मनोगत संकल्प उपन्यो ते कहेबे, किंमेपुविसेयं के ० चं माहारे पूर्वे श्रेयकारी? किंमे पचासेयंके० गुं माहारे पढी श्रेयकारी ? किंमे पुविपना विके० गुं मारे पूर्वे ने पीदिया के हितकारी पथ्य आहारनी पेरे, सुहाएके० सुखने खर्थे, खमाएके ० 0 Jain Education International ס For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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