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शोननकृतजिनस्तुति.
७७३ नित एवं पृथ्वीमंगल जेणे एवी कीर्तीः के यश जे, तेने जनेते के० पामे ; ते तारां वजमुसल बायुधो, अत्यंत जयशील ने. ॥ ४ ॥ इति पद्मप्रनजिनस्ततिः अवतरण-दवे सुपार्श्वजिनीस्तुति मालिनीवृत्ते करीने कहे जे.
कृतनतिकृतवान्योजंतुजातंनिरस्त, स्मरपरमदमाया मानबाधायशस्तं ॥ सुचिरमविचलत्वंचित्तवृत्तेः सु
पार्थ, स्मरपरमदमायामानबाधायशस्तं ॥१॥ व्याख्या-यः के जे सुपार्श्वनाथ नगवान्, निरस्तस्मरपरमदमायामान बाधायशः-निरस्त के दूर करेला बे, स्मर के कंदर्प, पर के शत्रु, मद के यात मद, माया के कपट, मान के अनिमान, बाधाके पीडा अने अयशके अपयश जेना एवा जंतुजातं के प्राणीसमूहने कृतनति के० का डे वंदन जे णे, एवा कृतवान के करता हवा. शस्तं के प्रशंसा करवा माटे योग्य एवा तं सुपार्श्व के० ते सुपार्श्वनाथने हे मानब के० ब अने व एउंना ऐक्य माटे हे मानव! परमदमायाः-परम के उत्कृष्ट ले दमाया के शम जेनो, एवी चित्तवृत्तेः के मननी प्रवृत्तिना अविचलत्वं के अचंचलपणाने सुचिरं के० घणा काल प येत, बाधाय के करीने स्मर के स्मरण कर. एटले जे पार्श्वनाथे सर्व प्राणी उना कामादिकनुं निवारण करीने ते प्राणी कने पोतानुं बाराधन कराव्यु, ते सु पार्श्वनाथने पोताना चित्तनी एकाग्रता करीने स्मरण कर. एवो नाव. ॥ १ ॥
व्रजतुजिनततिः सागोचरेचित्तटत्तेः, सदमरसदिता याबोधिकामानवानां ॥ पदमुपरिदधानावारिजानां
व्यहार्षीत् सदमरसहिताया बोधिकामानवानां॥२॥ व्याख्या-या के जे जिनश्रेणी,मानवानां के मनुष्योमध्ये, अधिका के अत्यंत श्रेष्ट अने सदमरसहिता-दमके उपशम,तेनोजे रस ते दमरस तेणे जे सहित ते सद मरस, तेउनी जे हिता के हितकारिणी,थने या के जे-सदमरसहिता-सत् के | उत्तम एवा जे, अमर के० देवो-तेए सहित के युक्त होइने, बोधिकामा-बोधि के अन्यपुरुषोने जे धर्मबोधनी प्राप्ति ते विषेले काम के बा जेनी एवी होती थकी, अने नवानां के० नवतत्व संख्यायुक्त, अथवा नवीन एवा वारिजानांके सुवर्ण कमलोना नपरिके० कर्वनागनेविषे पोताना, पदके० चरणने, दधान.
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