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________________ शोलनकृतजिनस्तुति. श्रांतिचिदंजिनवरागममाश्रयार्थ,माराममानम लसंतमसंगमानां ॥धामाग्रिमंनवसरित्पतिसे तुमस्त,माराममानमलसंतमसंगमानां ॥ ३ ॥ व्याख्या-हे नव्यजन! तुं जिनवरागमं के जिनश्रेष्टोनो जे बागम, तेने था नमके० महोटा प्रेमे वंदन कर. ते जिनश्रेष्ठोनो बागम केवो? तोके-श्रातिमिदं के संसारनेविषे चमणरूप श्रमनो बेद करनार, थने असंगमानां के० संसार संगरहित एवा यतिने धाश्रयार्थ के अाश्रय करवामाटे आरामं के उपवन समान, लसंतंके शोना पामनार,अने गमानांके सरिखा पाउनाअलावानुं अग्रिम के मुख्य एवं धाम के घरज एवो, अने नवसरित्पतिसेतुं-नव के संसाररूप जे सरित्पतिके समुह, तेने तरी जवा माटे पूलज होयना एवो, अने अस्तमाराम मानमलसंतमसं-अस्तके दूर करयां डे, मारके० कंदर्प,अामके रोग; मान के अहंकार, मलके कर्मरूप मल अने संतमसकेण्यज्ञानरूप तम जेणे एवो ॥३॥ गांधारिवत्रमसलेजयतःसमीर ॥ पातालसत्कु वलयावलिनीलनेते ॥कीर्तीःकरप्रणयिनी तवये निरुद॥ पातालसत्कुवलयावलिनीलनेते ॥४॥ व्याख्या हे गांधारि के गांधारी नामे अधिष्ठायक देवी, ये के जे, तव के तारा हाथमध्ये धारण करेला वज्जमुसल के वज अने मुसल ए नामनां थायु ध ते के० ते आयुधो, जयतः के सर्वोत्कर्षे करीने वर्तणुक करे बे. ते थायुधो केवां ? तो के-समीरपातालसत्कुवलयावलिनीलने-समीरपात के वायुनु चलन-तेणेकरीने आलसत् के अत्यंत दैदीप्यमान एवा जे कुवलय के० नीलकमलो, तेउनी जे बालि के० पंक्ति-तेना सरखी नीलवर्ण , नाके का ती जेनी, एवां अने जे करप्रणयिनी के तारा हस्तनेविषे प्रेमधारण करना रां एटले ताराहस्ते पोताने निरंतर धारण करे एवी इजा धारण करनारां, थने तारा हस्तस्पर्श करीने वलिनी के० व अने बनु शास्त्रमा ऐक्य कहेलुं ने एटले बलिनी के० बलवंत होतो थका जे निरुपातालसत्कुवलयाः-निरुक्ष के यावरण कयं , पातालसत् के पातालवासी देवोर्नु, कुवलय के पृथ्वीमम ल जे कीर्तिए, अथवा निरुह्य के निरोधन कयुं बे, पाताल अने सत् के ० शो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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