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________________ शोननकृतजिनस्तुति -- || के० धारण करतीथकी व्यहार्षीत् के संचार करती हवी. साजिनततिःके तेजि नश्रेणी वःके तमारी चित्तवृतेः के मनोवृत्तिना विषयमाटे व्रजतुके० पामो. ए टले जे जिनश्रेणी, देशेकरीने सर्वनु हित करवामाटे नवतत्वरूप सुवर्णकमल नप| | र पोताना पाय मूकीने संचार करेले; ते हे नव्यजनो! तमोने ध्यानगोचर था, दिशउपशमसौख्यंसंयतानांसदैवो,रुजिनमतमुदा रंकाममायामहारि ॥ जननमरणरीपानवासयन् सिधिवासे,रुजिनमतमुदारंकाममायामदारि ॥३॥ व्याख्या-हे जनो, तमे जिनमतं के जिनना मतने मुदा के हर्षे करीने न मत के वंदन करो. ते जिनमत केबुंडे ? तो के-संयतानां के० यतीनने, नरुके घणा एवा नपशमसौख्यं के उपशमना सुखने, दिशत्के देनारुं बने सदैव के निरंतर-नदारं के विशाल एवं, अने काममायामहारि-काम के मदन, माया के कपट-ए-नुं महारि के महाशत्रु एवं, अने अरं के शीघ्र, काम के अत्यं त, थायामहार के० सर्व विषयोनेविषे विस्तार पामेलुं जे मन, तेने हरण कर नालं, थने अरुजि के रोगरहित एवा सिदिवासे के मोदरूप वस्तीने विषे ज ननमरणरीणान्-जनन के जन्म, मरण के० मृत्यु-एनए करीने रीण के० गलित होनारा एवा पुरुषोने, वासयत् के वास करावनारूं एवंडे. ॥३॥ दधतिरविसपत्नरत्नमानास्तनास्व,नवधनतरवारिं वारणारावरीणां ॥ गतवतिविकिरत्यालीमहामान सीष्टा नवघनतरवारिंवारणारावरीणां ॥ ४ ॥ व्याख्या-हे महामानसी के हे महामानसी नामे अधिष्ठायक देवी ! तुं इष्टा न के अनिमत एवा मनुष्यादिकोने, अव के रक्षण कर. तुं केवी? तोके-या जास्तनास्वन्नवधनतरवारिं-बाना के कांती, तेणेकरीने अस्त के तिरस्कार कस्यो जास्वत् के विजलीए प्रकाशमान एवो जे नवधन के नवीन मेघ, अने तारवारिं के खड़ जेणे, एवं घने घनतरवारिं के अतिशय जेनुं पाणी एवं, अने कांति ना अधिकपणाए करीने सूर्यनुं केवल शत्रु, एवा रत्न के मणिने दधति के धा रण करनारीने. वाके अथवा अरीणां के ० शत्रुना रणारावरीणां-रणके छ संग्रामतत्संबंधी जे आराव के शब्द, तेणेकरी रीण के दयपामेली एवी अली के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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