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शोननकृतजिनस्तुति.
नथी एवा थने अरं के० अत्यंत. थानमंत के वंदन करनारा जे अमर के० देव, | तेए स्तुत के० स्तुति करेला एवा हे जिनकदंबक के० हे जिनसमूह, तव के तुं जे तेने प्रणतं के नव एवा पुरुषने, विनया के कांतीए परमा के० उत्कृष्ट एवी रमा के लक्ष्मी जे, ते आश्रयतु के थाश्रय करो. एटले नयरहित कंदादिकोए रहित थने जीवोने अनयदाता अने देवादिकोए स्तुत्य एवा हे जि नसमूह, तारी हूँ एवी प्रार्थना करूंळुके तारा शरणागत जे पुरुष-तेउने तारीक पाए मोदलक्ष्मी प्राप्त था. ए नावार्थ डे. ॥ २ ॥
जिनराज्या रचितं स्ता दसमाननयानया नयायतमानं ॥ शिव
शर्मणेमतं दध दसमाननयान यानया यतमानं ॥ ३ ॥ __व्याख्या-अयानया के नहीं ले यान के० अश्वप्रमुख वाहन जेने एटले अ श्वादिकवाहनेर हित एवी, परंतु असमाननयानया-असमान के बीजा सर खां नही ले आनन के मुख बने यान के गमन पण जेने, एटले जेनी मुख अने गति निरुपम बे एवी, जिनराज्या के तीर्थकरदेवोनी श्रेणीए रचितं के रचेला, यतमानं के कल्याणमाटे यत्न करनारां अने असमान नयान् के थ साधारण एवा नैगमादिक नयने दधत के धारण करनारां, बने नयायत मानं-नयके० न्याय अर्थात् अनेक शास्त्र, तेए करी यायत के विस्तीर्ण ने. मान के प्रमाण जेनुं, एवां जे मतं के सिद्धांतरूप वचन, ते शिवशर्मणे के अमारा मोदसुखमाटे स्तात् के० था. एटले अश्वादिक वाहन विनाज निरुपम एवा स्वरूपे अने गतिए शोजनारा तीर्थकरोनी श्रेणीए रचेला अनेक शास्त्रोए करी विस्तीर्ण जे सिक्षांतवचन ते अमारा मोदसुखने माटे था. एवो नावार्थ ॥ ३ ॥
शृंखलन कनकनिना याता मसमानमानमानवमदितां ॥श्री
वजशृंखलां कजयाता मस मान मानमा नवमहि तां॥ ४ ॥ व्याख्या-हे नव्यजन, तुं शृंखलनृत् के सांकलरूप जूषणोने धारण करना री अने कनकनिना के सुवर्ण सरखी ने कांती जेनी एवी या के० जे अत्यंत प्रसि-६ तां के ते कजयातां के कमल उपर बेसनारी एवी अने असमानमा नमानवमहितां-असमान के निरुपम ने मान के० मान्यता जेनी एवा महा श्रेष्ट मानव के० पुरुषोए महिता के पूजित एवी, थने अनवमहितां-धनव
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