SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोननकृतजिनस्तुतिः ១១ के पापरहित जे नक्तपुरुषो, तेने माटे हितांके हित करनारी एटले निष्पाप एवा पुरुषोनु हित करनारी एवी श्रीवजश्रृंखला के श्रीववशृंखला नामे अधिष्ठायक दे वीने असमानं के निरहंकारपणे आनम के वंदन कर. एटले शृंखलारूप नू षण धारण करनारी, सूवर्णकांती, सत्पुरुषोए पूज्य अने नक्तोनुं हित करना रीएवी श्रीवजशेखला देवीने निरहंकारपणे वंदन कर. एवो नावार्थ ॥ ४ ॥ इति शंनवजिन स्तुतिः संपूर्णा ॥ सर्व श्लोक ॥ १२ ॥ हवे अजीतजिनस्तुति द्रुतबिलंबित वृत्तेकरीने कहेले. त्वमशुनान्यनिनंदननंदिता सुरवधूनयनः परमोदरः ॥ स्म रकरी विदारणकेसरिन् सुरव धूनय नः परमोदरः ॥१॥ व्याख्या-हे स्मरकरी विदारणकेसरिन्-स्मर के कामदेव, तेज जाणे क रीइ के गजें तेनुं जे विदारणं के विदारण करवू, तेविषे केसरिन के सिंह सरखा, अने सुरव के सर्वजनने आल्हादकारक ने रव के देशनारूप शब्द जेना एवा हे अभिनंदन के अनिनंदन नामे जिनेश्वर परमोदरः-परम के शो जायमान बे, उदर के पेट जेनुं एवा अने नंदितासुरवधुनयनः-नंदित के हर्ष पमाड्यांबे असूरवधू के असुरकुमारनी स्त्रीयोनां नयन के नेत्रो जेणे एवा अने परमोदरः-परके० अन्यजीव, तेउने मोदके दर्षने, रके० देनारा अथ वा परमके श्रेष्ट बने अदरके निर्नय एवो जे तुं ते, नःके अमारा अगुनानि के अमंगलकारक कोने अथवा पापने,धूनयके कंपायमानकर एटले नाशकर.॥? जिनवराः प्रयत ध्वमिता मया मम तमोदरणाय महारिणः॥ प्रदधतो नुवि विश्वजनीनता ममतमोदरणाय मदारिणः॥२॥ व्याख्या-हे तीर्थकर देव, तमे मम के मारा तमोहरणाय के अज्ञानना नाशने माटे पयतध्वं के प्रयत्न करो. तमे केवा बो? तोके-अमत मोहरणाःके। अमान्य जे स्नेह अने संग्राम जेमने एवा अने इतामयाः के नीकली गयोडे रोग जेनाथी, एवा अने महारिणः-महांति के महोटी अरीणि के० धर्मचक लक्षणो जेने एटले धर्मचक्रचिन्होए युक्त एवा, अने यमहारिणः के मत्यु हर पशील एवा बने नुवि के नमिनेविषे विश्वजनीनता के सर्वजनोना हितका रीपणाने प्रदधतः के धारण करनारा एवा बो. आ बदु विशेषणे करीने मोह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy