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________________ शोभनकृत जिनस्तुति, ७६५ aa के विस्तिर्ण एवो तिमिर के अंधकार जेणे एवी, खने जिताशं के० जीती ס ० याशा ० दिशा जेणे. या ऋण विशेषणे करीने वज्जने सूर्यनी उपमा. वा पवि के वने दधति के धारण करनारी ने मदनासुराजिता - मद के दर्प ते करीने जे नासुर के० दैदीप्यमान एवा असुरादिकोए खजिता के० न जीता एली एवी. एटले हंसारूढ, विजली सरखी दैदीप्यमान, ने सूर्य सरखा वज्र ने धारण करना ने दैत्यादिकोए नहीं जीताएली एवी मानसी नामे देवी, सु खने थापो, एवो नावार्थ ॥ ४ ॥ इति अजितनाथ स्तुतिः संपूर्णा ॥ ८ ॥ अवतरणः- हवे शंनवजिनस्तुति व्यार्यागीति वृत्तेकरी ने कहें. निर्भिन्नशत्रुनवनय शं नवकांतारतार तार ममा रं ॥ वितर त्रातजगत्रय शंभव कांतारतारता रममारं ॥ १ ॥ व्याख्या - निर्जिन के विदारण कखोडे या कर्मरूप शत्रूथी उत्पन्न थलो वनय जेणे एवा हे निर्भिन्न शत्रुनवनय ! घने जव के० संसाररूप जे कांतार के० खरस्य, तेनाथ तार के० पार पमाडनारा एवा हे नवकांतारतार, घने तार के हे गुणोए करी दैदीप्यमान ! खने त्रात के० रक्षण कसुंबे जगत्रय के० त्रैलो क्य जेणे एवा हे त्रातजगत्रय, अने कांता के० स्त्री, तेणे सहवर्तमान जे रत के० मैथुन, तेने विषे रत के० अनासक्त एवा हे कांतारतारत, खने शंके० सुख ते जेनाथी उत्पन्न थाले एवा हे शंभवनाथ ! तुं मम के० मने रममारं खरम के० क्रीडा करनाa मार के० मदन जेनेविषे. एटले कामविषयरहित एवा शं के० सुखने खरं के० अत्यंत वितर के० थाप. एटले हे शंनव जिनेश्वर ! तुं कर्म रूप संसारनो नाशकरीने त्रैलोक्यनुं रक्षण करनारो ने विषयनेविषे विरक्तले; ए माटे मने विषयवासनारहित एवा सुखने थाप. एवो नावर्थ. ॥ १ ॥ श्रयतु तव प्रणतं विजया परमा रमा र मानमदमरैः ॥स्तु तरहित जिनकदंबक विजया परमार मारमानमदमरैः ॥ २ ॥ व्याख्या- 'हे विजय के० जेनाथी नय नीकली गयोबे एवा हे विजय, अने पर के० अन्यजीव तेने न मारनारा एटले नहिंसा करनारा एवा हे परमार, घने मारमानमदमरै:- मार के० कंदर्प, मान, के० घनिमान, मद के० खातमद, मर ० मरण एए करीने रहित एटले जेने कंदर्प, अभिमान, आत्मद अने मृत्यु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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