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________________ शोजनकृतजिनस्तुति. ७६३ ढ्यधूलीकणान् के परिमलेयुक्त एवी परागना बिंदूने, नित्यं के निरंतर थद धत् के० प्राशन करती हवी. तत्र के ते कमलने विष अब्जकांती के० कमल सरखी जेनी कांती , एवा क्रमौ के पोताना चरणोने निदधती के० धारण क रनारी, सरतालसाके० स्वरूपे अतिसुकुमाल दोवाथी शीघ्रगमनादिकविषे मंदपण धारण करनारी अने धमरीनासिता के शुश्रुषा करवा माटे नजीक प्राप्त थए लीन जे देवांगना-अप्सरान, तेनए शोनायमान एवी अने गुना के० गुचवर्ण एवी समुदिता के० हर्षयुक्त जे श्रुतदेवता नामक देवी ते वः के तमोने पाया त् के रक्षण करो. एटले जे कमलनेविषे चमराउनी पंक्ति, सुगंधयुक्त परागर्नु से वन करती हवी; ते कमलनेविषे स्वकीय चरण स्थापन करनारी श्रुतदेवता त मोने रक्षण करो. एवो अर्थ ॥ ४ ॥ इति श्रीकृषनस्तुतिः संपूर्णा ॥ अवतरण-हवे अजितनाथ जिनेश्वरनी स्तुति पुष्पितायावृत्ते करीने कहे जे. तम जित मनिनौ मियो विराजघन घनमेरुपराग मस्तकांतं ॥ निजजननमहोत्सवेधितष्ठा वनघन मेरु पराग मस्तकांतं ॥१॥ व्याख्या-यः के जे अजितनाथ, निजजननमहोत्सवे के० पोताना जन्म कालना महोत्सवनेविषे अनघनमेरुपरागं-अनघ के निरवद्य एवं जे नमेरु के देवद, तेना पुष्पोनो डे पराग के धूल जेनेविषे एवा, विराजनघनमेरुप रागमस्तकांतं-विराजत् के शोनायमान एवं जे वनके० अरस्य, तेणेकरी घन के निबिड एवो जे मेरु नामक पराग के मुख्यपर्वत, तेना मस्तकांतं के शि खरायप्रत्ये अधितष्ठौ के बेसता हवा. तं के० ते अस्तकांत-अस्त के अस्त गिरिमंदर तेना सरखो कांत के सुंदर एवा अथवा अस्त के० परित्याग करीने कांता के स्त्री जेणे एवा अजितं के० कोइए पण न जीतेला जे अजितनाथ ते ने अनिनौमि के० वंदन करुं हुं एवो नावार्थ ॥ १ ॥ स्तुत जिन निवदंत मर्तितप्ता ध्वनदसुरा मरवेण वस्तुवंति ॥ यममर पतयः प्रगाय पार्श्व ध्वनदसुरामरवेणव स्तुवंति ॥२॥ व्याख्या-हे नव्यो, यं के जे जिननिवहं के जिनना समूहप्रत्ये पार्वध्वन दसुरामरवेणवः-पार्थ के पार्श्वनागनेविषे ध्वनंत् के शब्द करे , असुरा मराणां के० असुर थने देव एना वेणु के वंश जेना एटले जेना पार्श्वनागने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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