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________________ शोजनकृत जिनस्तुति. मर्थ नहीं; ने जेना चरणोने देवोए वृष्टि करेलां पुष्पो, सुगंधयुक्त करतां हवां, ते जिनेश्वर तमोने रक्षण करो. एवो नावार्थ. ॥ २ ॥ ७६‍ शांतिं व स्तनुता न्मियो नुगमना द्यन्नैगमाद्यैर्नये ॥ रक्षोनं जन दे तु लां बितमदोदी गजालं कृतं ॥ तत्यज्यै जगतां जिनैः प्रवचनं दृप्य कुवाद्यावली ॥ रोजंजन देतुलां बितमदोदी पांगजालं कृतं ॥ ३ ॥ व्याख्या - हेजन के० हे नव्यजन ! जगतां के० त्रणे लोकोने पूज्य के० पूजन करवा माटे योग्य एवां, जनैः के० तीर्थकरे कृतं के० करेला जे प्रवचन के० गए पीठकरूप जिनमत, ते वः के० तमोने अतुलं के० निरुपम एवी शांति के० मोद प्रत्ये किंवा उपशमप्रत्ये तनुतात् के० विस्तार करो. जे प्रवचन, मिथोनुगमनात् के० परस्पर अनुवर्तनरूप हेतुस्तव नैगमाद्यैर्नयैः के० नैगम, संग्रह, व्यवहार, कजुसूत्र, शब्द, समनिरूढ ने एवंभूत- एवा सात नयोए करीने दोनं के० प रवादी पुरुषो जीताने योग्य, धने बितमदोदी गिजालं के० जेणे वादी पु रुषोनो दर्प बेदन करेलो बे; खने जेनेविषे याचारादिक अंगनो समुदाय वर्णन को बे एवा, ने दप्यत के० दर्प धारण करनारा जेन कुवादी के० मिथ्यावा दी, तेनी जे धावली के० श्रेणी तेज जाणे रतः के० राक्षस, तेनु जंजन के० नाश करनारा जे हेतु के० दृष्टांत, तेणे लांबितं के० शोजित ते दृप्यत्कुवाद्याव जीरक्षोजन हेतु एवा, खने दीपगिजालंकृतं के० टाल्यो बे अंगज के० मदन जेणे एवा श्रमण पुरुषोए अलंकृत के० अंगीकार करेला खदः के० ए प्रवचन तमोने निरुपम एवी शांती प्रत्ये विस्तार करो. ॥ ३ ॥ शीतांशुलिपि यत्र नित्यमद्धधाढ्य धूलीकणा ॥ ना लीकेसरलाल सा समुदिता शुभ्रामरी जासिता ॥ पाया६ः श्रुतदेवता निदधती तत्रान्न कांतीक्रमों ॥ नालीकेसरलालसा समुदिता शुभ्रामरी नासिता ॥ ४ ॥ व्याख्या - यत्र के० जे शीतांशुत्विषि के० चंड् सरखी जेनी कांत बे एवी नाली के० कमलनेविषे, केसरलालसा के० कमलसंबंधी पराग सेवन कर वानी वा धारण करनारी इनासिता के हाथीना गंमस्थलने विषे मद प्राशन करवाने माटे लुब्ध इने बेठेली अथवा हस्तीना सरखी नीलवर्ण, श्रासमुदि ता के० शीघ्र एक ठेकाणे मलेली, चामरीखाली के० नमराजनी श्रेणी, ते गंधा 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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