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________________ शोजनकृतजिनस्तुति. तथापि ते लोकोमध्ये निंद्यपणु पामतो नथी. तेम नगवान पण असामर्थवान थता नथी. तेमज आठ कर्मेकरी विस्तारयुक्त जे ज्ञानावरणादि नेदे करीने नि न एवी कर्मनी थावलि के० पंक्ति तेज रंना के कदली, तेना मर्दन विषे कारण एवो सामज के गज, एवा हे विस्तारिकर्मावलीरंनासामज! तेमज जेनाथी मोटी पण आप्ति नष्ट थइन् एवा हे महानष्टापत् ! तेमज यानासुरैः के०कां ति समुदाये आसपास दैदीप्यमान एवा असुरैः के असुरनाम देवविशेषोए न क्त्या के नक्तिए जेना चरणकमल वंदन कस्या एवा हे वंदितपादपद्म! ते मज प्रोधित के अत्यंत तज्या डे आरंन के० सावद्य व्यापार जेणे, एवा हे प्रो | शितारंन ! तेमज थाम के रोग, तेणे जे सहित ते साम, तेणे रहित माटे हे असाम के हे रोगरहित! तेमज जनने आनंद उत्पन्न करनारा हे जनानि नंदन! अने अष्टापद के० सुवर्ण तेना सरखी थाना के कांती जेनी एवा हे अष्टापदान ! तुं पंमितीने माटे उत्साह उत्पन्न कर. एवो नावार्थः ॥ १॥ ते वः पातु जिनोत्तमाः दतरुजो नाचिदिपु र्यन्मनो॥दारा विभ्रमरोचि ताःसुमनसो मंदारवा राजिताः॥ यत्पादौ च सुरोशिताः सुरजयांचक्रुः पतंत्यों बरा॥ दाराविभ्रमरोचिताः सुमनसो मंदारवाराजिताः॥२॥ व्याख्या-दतरुजः के जेमनारोग कोणथयाने अथवा जेमनाथी रोग नष्ट थयाने एवाते जिनोत्तमाः के सामान्य केवली जिनमध्ये नत्तम एवा जे तीर्थकर, ते वः के तमारे माटे रक्षण करो. ते जिनोत्तम केवाने ? ते कहेले. यन्मनः केजेना मनने वित्रमरोचिता के हावनावादिक विलासे करीने शोनित एवी, अने सुमनसःके० जेना शब्दो मधुरते एवी, अने राजित के अलंकारादिकोए सुशोनित एवी दाराः के स्त्री, तेज, नाचिदिपुः के० दोन करवा माटे समर्थ थ नहीं: अने यत्पा दो के जे जिनेश्वरोना चरणोने, सुरोशिताः के देवताउए समवसरणनेविषे नाखे ली, अंबरात्पतंत्यः के थाकाशथी पडनारां,अराविन्रमरोचिताः के० शब्द करनारा जे चमरा, तेजने पराग ग्रहण करवामाटे योग्य एवां,अने मंदारवाराजिताःके कल्पव दना पण पुष्प समुदायोए पोताना सुगंधिपणाए करीने न जीतेला एवां, सुमनसः के पुष्पो, ते सुरनयांचक्रुः के सुगंधयुक्त करता हवा. सारांशके जे जिनेश्वरना म नने उत्तमस्त्री पण नाना प्रकारना दावनावादिके करीने दोन करवा माटे स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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