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________________ सवासो गाथा- स्तवन. ते कारण लादिकथी पण ॥ शील धरे जे प्राणीजी ॥ धन्य तेद कृत पुण्य कृतारथ॥ महा निसीये वाणीजी॥ ए व्यवहारनये मन धारो ॥ निश्चयनय मत दाख्यंजी॥ प्रथम अंगमां वितिगिनाए ॥नाव चरण नवि नाख्युंजी ॥३॥ व्याख्या-तेह कारणे लजादिकथी पण जे नरनारी शील पाले ले, तेह धन्य कृतपुण्य एवी वाणी महा निशीथमांहे . धन्नेणंसे पुरिसे कय माहाणुनावे जे णं लोग लजाए विसीलं पाले। धन्नेणंसा कयबा कयलरकणा माहाणुनावा जेणं लोग लहाण विसीलं पालेश॥ इत्यादिवचनात् ॥ए महा निशीबमांहे कयुं ते व्य वहारनये मनमा धारो. निश्चयनयनो मततो प्रथम अंगमाहेज कह्यो डे-नाष्यो जे जे, विचिकित्सा के मननी असमाधी ते बतां नावचरण के० नाव चारित्र जाख्युं नथी. ठेकाणे ठेकाणे नयना अर्थ प्रमाण . ॥ ३ ॥ . ढाल आठमी ॥ चोपानी देशीने. ॥ अवर एक नाषे आचार ॥दया मात्र शुचज व्यवहार ॥ जे बोले तेहज बपे॥शुद्ध करूं हूं मुख इम जपे ॥४॥ व्याख्या-अवर के बीजो कुमति एक वली नाषे के कहेले ; जे दया मात्रके केवल दया तेज शुक्ष व्यवहार जाणवो. एवं जे मुखे बोलेले तेहज उबापेले. षट् कायनत लोके कोण योगे दया थाय? वली टुं शुम करूं एम तेमुखे जपेले.॥७॥ जिनपूजादिक शुन व्यापार ॥ ते माने आरंन अपार ॥ नवि जाणे नतरतां नई॥ मुनिने जीवदया क्यां गश्॥५॥ व्याख्या-जिनपूजादिक जे गुन के जला व्यापार ; तेहने कुमति, अपार आरंन करी माने ले. नवि जाणेजे एम मुनिने नईके नदी उतरतां जीव दया क्या ग? जयणाए उतरे तो जब जलं तब वणं इत्यादि रीते षट्कायनो वध संनवे. जो ऊतरतां मुनिने नदी॥विधि जोगे नवि हिंसा वदी॥तो विधि जोगे जिन पूजना॥शिव कारण मत नूलो जनान॥ व्याख्या-हवे जो एम कहेशो के, मुनिने विधि योगे नदी उतरतां आज्ञा प्रमाणे थासय विशुधे नावथी हिंसा न वदी के न कही. अप्नब विसोही ए जीव नि काएहिं संथडे लोए देसिय महिं सयत्तं जिणेहिं ते नुक्क दंसीहि ॥ इति वचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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