SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ४३ सवासो गाथा- स्तवन. लोकविण जेम नगरमेदिनी ॥ जेम जीवविण काया ॥ फोक तेम ज्ञानविण परदया॥ जिसी नटीतणी माया॥शुद्धाधना व्याख्या-लोकोविना जेम नगरनी मेदिनी के पृथ्वी नजडरूप, अने जीव विना जेम काया फोकके अकाजरूप दीसे, तेम ज्ञानरूप आत्मदया विना पर दया, ते जेहवी नाटकीयानी माया फोकट, तेम फोकट जाणवी. ॥ ४ ॥ सर्व आचारमय प्रवचने॥नण्यो अनुनवयोग ॥ तेहथी मुनि वमे मोहने ॥ वली अरति रति शोग ॥ शुद्ध ॥४॥ व्याख्या-श्री प्रवचने सिद्धांते अनुनव योगके ज्ञान योग सर्व प्राचारमय जण्यो. यतः सबे सुवितेण कयं इति वचनात्. तेह अनुनवयोगथी मुनि, मोह ने के कषाय मोहनीयने वमे. वली अरति रति, अने शोक इत्यादिक नोक पाय मोहनीयने वमे. ते माटे ज्ञानयोगनोज दृढ आदर करवो. ॥४॥ सूत्र अदर परावर्तना॥ सरस शेलडी दाखी॥तास र स अनुभव चाखीए॥जिहां एक सारखी॥ शुद्ध॥५॥ व्याख्या-सूत्र अकरनी परावर्त्तना एटले कर्म योग, ते सरस शेलडी सरखो दे खाड्यो. तास के० तेहनो रस ते अनुनव, ते चारवीए. जिहां एक बातम साखी ३. स्थान वर्ण (२) कर्म योग अर्थ (२) आलंबन निरालंबन ए ज्ञान योग.॥५० आतमराम अननव नजो ॥तजो परतणी माया ॥ एक बेसार जिनवचननो॥ वली एशिवगया ॥ शुद्ध ॥५॥ व्याख्या-थात्माने थाराम के रमावे एवो अनुनव, तेने नजोके० सेवो. परतणीके ० पुजलतणी माया तजो-बांमो. एहज जिनवचननो सार ले. वली संसार तापनी टालबहार एवी एहज शिवतरुनी बाया. ॥ १ ॥ ढाल पांचमी ॥ प्रनु चित्त धरीने अवधारो मुज वात ॥ एदेशी ॥ एम निश्चयनय सांजलीजी।बोले एक अजाण॥आ दरशं अमे झाननेजी॥ शुंकीजे पच्चखाण ॥ सोना गीजिन सीमंधर सुणो वात ॥ ए आंकणी ॥५२॥ व्याख्या-एम एहवो गुड़ निश्चयनय सांजली एक अजाण मतना अध्यात्मी बोले के, अमे एकला ज्ञाननेज आदरगुं-अंगीकार करमु; पञ्चखाण प्रमुख व्यव - - -- --- - -- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy