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________________ रत्नाकरपंचवीसी. अशक्य, ते पुण्यकर्म तो में संपादन करघु नहीं. तेज बतावुलु. मने, गुरू दितेषु के गुरूए नाषण करेला प्रकारचें श्रवण करवाविषे वैराग्यरंगके वैरागनी वास ना नाजनिकेनत्पन्न थ नही. यउक्तं ॥धर्माख्याने श्मशाने च रोगियां यामतिर्न वेत् ॥ यदि सा निश्चलाबुद्धिः को न मुच्येत बंधनात् ॥१॥ तेमज उर्जनानांके अस ऊनोना, वचनेषुके वाक्योनेविषे, शांति नूत्के। उपशमप्राप्त थयो नही. तेमज मम कोपि अध्यात्मलेशःनके मने कोइपण आत्मबुदिए पठनपाठनादिक अष्टांग योगनो लव पण प्राप्त थयो नही. ॥ २२ ॥ पूर्वे नवेऽकारि मया न पुण्य मागामिजन्मन्यपि नो करिष्ये ॥ यदीहशोहं मम तेन नष्टा नूतो नव नाविनवत्रयीश ॥२३॥ व्याख्या-हे नेतः मया पूर्वेनवे पुण्यनाकारिके में पूर्वजन्मनेविषे सुकत सं पादन कयुं नही. ए केम समजवामां आव्युं ? तो के तेवं सौख्य प्राप्त थयु नथी ए उपरथी समजायडे. तेमज धागामिजन्मन्यपिके० आगल प्राप्त थनारा जन्म नेविष पण, नो करिष्येके पुण्यसंपादन करनार नथी. ए केम समजवामा श्राव्यु? तो के, वर्तमान जन्मना अनुमाने करीने. वर्तमानजन्मनेविषे तो, दत्तं न दानं त्यादिके करीने पुण्यसंपादन करां नही, ए स्पष्टज प्रतिपादन कडूं. आ जन्मने विषे पुण्य कमु नही, तेमज आगलपण करनार नथी; एवं सिम थायडे. पुण्येन व र्धते पुण्यं पापं पापेन वर्धत इतिवचनात् ॥ यदीहशोहंके जे कारणमाटे, पुण्योपार्जन विवर्जित एवो दुं बुं; तेन के० ते कारणे हे इश, मम नूतोनवनाविनवत्रयी न ष्टा के मारा पूर्वे थएला, वर्तमान कालना अने पागल थनारा एवा जन्मनी त्रयी नाश पामी. एटले सुकृतसंपादनविना निरर्थक थः एवो नावार्थ. ॥ २३ ॥ किंवा मुधाऽहं बढुधा सुधानुक्पूज्य त्वदने चरितं स्वकीयं ॥ज ल्पामि यस्मात्रिजगत्स्वरूप निरूपकस्त्वं कियदेतदत्र॥४॥ व्याख्या हे सुधानुक्पूज्य के अमृतने नदण करनारा जे देवो-तेनए पूजा करवाने योग्य एवा हे प्रनो! त्वदने के तारा अपनागनेविषे स्वकीयं के मा रां चरितं के चरित्रोने, सुधा के व्यर्थ, बहुधा के नानाप्रकारे करी, अहं किंवा जल्पामि के दुं शुं वारं कथन करूं! यस्मात् के जे कारणमाटे, त्वं त्रिजगतस्वरू प निरूपंकेतुं त्रैलोकना लक्षणोनुं निरूपण करनारोजे, ते कारण माटे यत्र कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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