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________________ रत्नाकरपंचवीसी. ए यदेतत् के तारेविषे ए मारां चरित्र कोण गणतोमाने ? एटले त्रिभुवनजनोनु स्व रूप जाणनारो तुंबे, एमाटे मारी पण सर्व स्थिति तने विदितजले. ॥ २४ ॥ शार्दूलविक्रडितबंद ॥ दीनोहार धुरंधर स्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपापात्रं नात्रजने जिनेश्वर तथाप्येतां न याचे श्रियं ॥ किंव निदमेव केवलमहो सबोधिरत्नंशिवं श्रीरत्नाकरमंगलेकनिलय श्रेयस्करं प्रार्थये ॥ २५॥ इतिश्रीवीतरागस्तोत्र समाप्तं ॥ व्याख्या-हे जिनेश्वर. के. हे केवलीश! त्वदपरः के ताराविना बीजो पुरुष दोनोहार धुरंधरः के दीनोनो नझार करवा माटे तत्पर एवो नास्ते के० नथी. अने अत्रजने के आलोकनेविषे मदन्यः के० माराथी बीजोपुरुष कृपापात्रं ना स्ते के० रूपानुं स्थान नथी. अर्थात् कृपा करवाने अत्यंत योग्य एवं स्थान ते माराथी बीजं कोई नथी. जो एवं ने तथापि एतां श्रियं न याचे के० हाथी, घोडा कोशादिक सर्व जनमध्ये प्रसिह जे ए संपत्ति, ते मलवा माटे ढुं प्रा र्थना करतो नथी. किंतु के० गुं तो हे अर्हन के हे जगवन् ! हे शिवश्रीर त्नाकर के हे मोदलक्ष्मीना समु! हे मंगलैकनिलयकेल हे नकमंदिर! इदं श्रेयस्कर के ए कल्याणकारक एवं, सबोधिरत्नं के० उत्तम प्रकारना जिनधर्म प्राप्ति माटे जे चिंतामणी सरखं रत्न, तेनीज केवल हुँ निश्चयेकरी प्रार्थना क रूं. या श्लोकमध्ये स्तुति करनारे प्रचने शिवश्रीरत्नाकर एवं संबोधन आप्यु, ते मांज पोतानुं नाम श्रीरत्नाकरसूरि एवं सूचवेखंडे ॥ २५ ॥ इतिश्री रत्नाकरसूरिकत रत्नाकरपंचवीसी बालावबोध सहित समाप्तः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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