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________________ २४ रत्नाकरपंचवीसी. नवत एव प्रकाशित के तनेज निश्चये करी प्रगट करेलुजे. एटले लगायुक्त एवो जे ढुं, तेप्रत्ये अवलोकन करी ते मारां सर्व याचरण जाण्यांडे. एवो अर्थ. जे कारण माटे हे सर्वज्ञ! तुं सर्व जगत्ने स्वयमेव वेत्सिके पोताना झाने करी जाणेले.॥११॥ ध्वस्तोन्यमंत्रैः परमेष्ठिमंत्रः कुशास्त्रवाक्यै निहितागमोक्तिः॥ कर्तुं तथा कर्म कुदेव संगादवांबि ही नाथ मतिभ्रमो मे ॥१॥ व्याख्या-हे नाथ, ही इति खेदे-मेही मतिनमोऽजूत् के माहरो शो था बुद्धि विपर्यास थयो!! तेज कहे.मया के ढुंजे तेणे--परमेष्ठिमंत्रः के परमपदनेवि ये रहे माटे परमेष्ठी-तेनो जे नमस्काररूप नमो थरिहंताणं इत्यादिक नवपदा त्मक मंत्र, ते अन्य मंत्रैध्वस्तः के बीजा मंत्रोए आदररहित कस्यो. तेमज में आगमोक्तिः के० आगमनी सिक्षांत वाणी, ते कुशास्त्रवाक्यैः के वात्स्यायनादि वाक्योए करीने, अथवा कुत्सित एवां जे शास्त्रो-तेना वाक्ये करीने निहिता के. नाश पमाडी. एटले श्रवण करी नहीं. एवो अर्थ. तेमज में कुदेव संगात् के० हरिहरादिक कुत्सित देवोनी सेवनाए करीने कर्म कर्तु के झानावरणीयादिक पाप कर्मनुं अपाकरण करवा माटे अवांनि के च्यु. ॥ १२ ॥ विमुच्य दृग्लदयगतं नवंतं ध्याता मया मढधिया हृदंतः॥ कटादवदोजगनीरनानीकटीतटीयाः सुदृशां विलासाः॥१३॥ व्याख्या-हेजगदीश ! मुढधिया के जेनी बुद्धि मुढचे एवो हुँ, तेणे दृग्लक्ष्य गतके दृष्टिने गोचरीजूत एवो नवंतं के चिंतामणी सरखो जे तुं-तेने विमु च्य के परीत्याग करीने हृदंतः के० पोताना हृदयनेविषे सुदृशांविलासाः के चं चलत्वे करी जेनी दृष्टि, सुंदरने एवी हरिणादि स्त्री-ना हावनावादिक वि भ्रमज, ध्याताः के चिंतन कस्या. ते विलास केवा? तोके-कटादवदोजगनीरना नीकटीतटीयाः के नेत्रकटाद, स्तन, गंजीर एवी नानी, घने कटीप्रदेश-इत्यादि क अवयवोए मोहनशील. चिंतामणि रत्न सरखो एवो जेतुं-तेनो त्याग करीने दूं कश्मलविषयोनेविषे थासक्त थयो. ॥ १३ ॥ लोलेदणावनिरीक्षणेन यो मानसे रागलवोविलग्नः॥ न शुचसिद्धांतपयोधिमध्ये धौतोप्यगात्तारक कारणं किं॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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