SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरपंचवीसी. कृतं मयाऽमुत्र हितं न चेद लोकेऽपि लोकेश सुखं न मेऽनूत् ॥ अस्मादृशां केवलमेव जन्म जिनेश जझे नवपूरणाय ॥६॥ व्याख्या-मया अमुत्र हितनकतंके में परलोकनेविष एवं पुण्यकृत्य कयुं नही; अने हे लोकेश ! के० षटकायना स्वामि एवा हे लोकेश ! इहलोकेपि मे सुखं ना नूत् के० आ लोकनेविषे पण मने सुख प्राप्त थयुं नहीं. ए माटे हे जिनेश के हे केवलिपते ! अस्मादृशां जन्म के० घमारा सरखाना अवतार ते, केवलं नवपूर पायैव जझेके केवल अवतार गणनाना पूरणने माटे एटले जेम पूर्वे थापणा घणा अवतार थया तेमज आ पण एक अवतार, जन्म गणनाना पूरण माटेज थयो. मन्ये मनो यन्न मनोझटत्तं वदास्यपीयूषमयूखलानात्॥ द्रुतं महानंदरसं कगेर मस्मादृशां देवतदश्मऽतोपि ॥७॥ व्याख्याः-हे देव, के हे नाथ! ढुं एवं मार्बु के, यदस्मादृशां मनः के जे अमारा सरखार्नु मन, मनोज्ञ के सुंदर, वृत्त के वर्तुल एबुंजे त्वदास्य के ता रूं मुख, तेज कोइ एक, पीयूषमयूखके अमृतकिरण चं, तेना लाने करीने अथ वा मनोझ के सारूंचे वृत्त के शील जेनु, एवा हे मनोइवत्त, हेवीतराग! तारा मुखचंइना जाने करीने महानंदरसं के० सद्योरसास्वादथी उत्पन्न थएली जे पर म प्रीति तेज कोइ एक रस के उदक तेने न द्रुतं के इवीनत थयुं नथी; तदश्म तोपि कठोरं के ते पाषाण करतां पण कतण जाणवं. कारण, चंना दर्शने क रीने जोवरहित एवो पण चंकांत पाषाण इवीनूत यायचे अने मनने तो तारा मुखरूप चंना दर्शने कर इव के पिंगल, प्राप्त थयुं नहीं. ते कारण माटे ते मन, पाषाण करतां पण कठोर जाणवू. एवो नावार्थ. ॥ ॥ त्वतः सुजःप्रापमिदं मयाप्तं रत्नत्रयं नूरि नवभ्रमेण ॥ प्रमादनिनावशतो गतंतत्कस्याग्रतो नायक पूत्करोमि ॥७॥ व्याख्या-हे नायक हे स्वामिन् ! त्वत्तः के ताराथी सुननं के अत्यंत उर्जन एवं इदं रत्नत्रयं के० ए ज्ञान, दर्शन, चारित्र लदण रत्नत्रय, मयातं के में संपादन कयुं हतुं; परंतु ते नूरिनवन्रमेणकेपणा जन्मनेविषे जे चमके ब्रांतितेणे करीने अने प्रमादनिज्ञवशतः के मद प्रमुख प्रमाद अने पांच प्रकारनी प्रसिह जे नि-तेना माहात्म्ये करी ततके ते दूर गयुं एटले अंतर्धान पाम्युं. %3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy