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________________ श्री निगोदवत्रीशी. तम्दा सहिंतो जीवेहिंतो फुडंगचं ॥ नकोस पयप एसा ढुंति विसेसादिच्या नियमा ॥ २६ व्याख्या - तेह कारणे सर्वे जीव थकी ए प्रगटज जाणवो. उत्कृष्टपदे जीव प्रदेश निश्वे विशेषाधिक बे ॥ २६ ॥ एहज अर्थ प्रकारांतरे कहे बे. दवा जेण बहुसमा सुदुमा एलोवगादणाए ॥ ते किं किंजीव बुद्दीई विरल्लए लोए ॥ २७ ॥ ११ व्याख्या - जेह कारणे चन्दरजात्मक लोकमांहे गोले सहस्र कोडी कोडी प्रा यजीव रह्या बे; तेह कारणे कल्पनाएं लक्षप्रमाण सूक्ष्म गोला जीव संख्याए प्रायतुल्यज बे तथा ते सूक्ष्म गोला अवगाहनाए सरखा बे. गुरु, शिष्यने क के, जेह कारणे कल्पनाए दश दश सहस्र प्रदेशरूप अवगाहना सरखीज बे, ते ह कारणे सर्व जीवप्रदेश सरखा जाणवा माटे केवली समुद्घातनी परे बधा लो कमांदी एकेकोजीव विस्तारे: एम करतां एकेके आकाश प्रदेशे दशकोडाकोडी जीव प्रदेश यावे, ते माटे सर्वजीव ने जीवप्रदेश सरखाज जाणवा. ॥ २७ ॥ एवं पिसमाजीवा एग पएस गयजियपएसेंदि ॥ बायर बानापुण तिपएसा विसेस दिया ॥ २८ ॥ व्याख्या - ए प्रकारे सर्व जीव प्रदेशे रह्या, सर्वजीव प्रदेशे समान होय; पण बादर जीवना बाहुव्यथकी जीव प्रदेश विशेषाधिक थाय ॥ २८ ॥ ते सिप पु रासी निदरीण मिणं जणामि पञ्चकं ॥ सुद्गदणगादाचं ववणारा सिप्पमाला हिं ॥ २९ ॥ व्याख्या - तेह राशिना दृष्टांते करीने प्रत्यक्ष सुखे जाणवा घने परने जलाव वा निखर स्थापना राशि प्रमाणे करी जयामिके० कडुबुं ॥ २९ ॥ गोलाणलक मिक्कं ॥ गोले गोले निगो लकंतु ॥ इक्विनिगोए ॥ जीवाण लक मेक्वेक्कं ॥ ३० ॥ व्याख्या - हवे स्थापना राशि देखाडेबे गोलातो लाखडे, गोले गोले लाख नि गोद बे. एकेके निगोदे जीवनो एकेको लाखबे ॥ ३० ॥ कोडिसय मेगजीवप्प समातमेव लोगस्स ॥ गोल निर्नय जिवाणं दसय सहस्सा समो गाढो ॥ ३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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