SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०४ कागल. इव्यलणं एपण प्रत्येक प्रत्येकनु लक्षण नथी.तेमाटे एक एक ग्राहीबे मूल नय मिथ्या दृष्टि. त्रीजो तो नय नथी. तेमाटे बेमा पूर्ण सम्यक्त्व नही इम न कहे. जेमाटे ए बे एकांत साक्षात् नजनाक्रांत थका अनेकांत ए प्रक्रियाए सर्वत्र स्वानाविक नत्पाद व्यय ध्रौव्य कहेवा. अागासाईआणं तिसंपरपञ्च मणियम्माए समति गाथाः-प्रतीके अकार प्रश्लेषे अनियमात्. ए पण व्याख्यान टीकाकारे कडुंडे. तेमाटे परप्रत्य य ते पण कथंचित् स्वप्रत्यय कहिये. युक्तंचैतत्-क्ष्योरेकैका नतिरिक्तत्वादिति. अ स्मत्तानेकांत व्यवस्थायां आत्माख्यातिमांहि पण ए अर्थ सिम डे. इम अषु संयुक्त युक्ति लौकिक प्रदेशावधिक परार्थादि संख्या पर्याये तत्तविषयता पर्याये पण अलोकाकाश प्रदेशमांहि गुम उत्पाद व्यय वखाणवा. सापेक्ष पर्याय मिथ्याज. ए पण एकांत नथी. कथंचित्सापेदं कथंचित् निरपेदं सर्वमित्यादि व्यवस्थिते. ए रीते एक समये एक इव्ये घणा उत्पाद व्यय होवे. तदनुमत तावत् इव्य पण कहेवा. तथाच संमत्ति-एग समयम्मि एग दवियस्स बदुधाविहुँति अप्पाया उ प्पाय समावि गमा विश् अनस्सगमणियमा अगुरु लघु पर्यायर्नु उत्पादव्यये ए बे तो सर्वत्र आज्ञा सिहज . __ तथा जे लिख्यो कालव्य समयरूप श्वेतांबर माने, तिहां उत्पाद व्यय धौ व्य केम सधाय? ते तो उनयरूप कीजै तदिज सधाये. पर्याय अर्पणाए उत्पाद व्यय व्यापणाए ध्रौव्य उजय विज्ञाए धर्म त्रय नक्तंच श्रीतत्वार्थ सूत्रे अपिता नर्पित सिझे रिति. हवे कहेशो ते समय किणरे आधारे जे? तो कहिये जीवाजीव इव्यने आधारे ले. जीवाजीव इव्यरो काल ते वर्तनारूप पर्याय ले. इव्य नथी ते वर्त ना पर्यायरानाजन ब इव्य जीवाजीवज ले. तथाच सूत्रं. किमयं नंते कालेत्तिए प बुंच गोयमा जीवाजीवेव. अजीवोचेवत्ति अतएव पर्याय इव्योपचार करी अनंत कालव्य सूत्रे नाख्या. तथाच श्री नत्तराध्ययन सूत्रः-धम्मो अधम्मो आगासं दवं इकिक माहियं अणंताणिय दवाणि कालो पुग्गल जंतवोत्ति. प्रशमरति ग्रंथम ध्ये नमास्वातिवाचकैरप्युक्तं धर्माधर्माकाशाद्यकैकमतःत्रिक मनंतं इति त्रिकं जीव पुजनास्तिकायादा समय लक्षणं. ___ कोइ कहे जे अवगाहनादि हेतुता गुणे जिम बाकाशादि प्रथक व्य होए, तिम वर्तना हेतुता गुणे कालव्य पण प्रथक होइ. किम नजावे? तेहने कहि ये जे अवगाहना हेतुताए अवगाहनाद्यनाश्रय इव्य कल्पिये, तिम वर्तत्ता हेतुताए वर्तमानाश्रय ऽव्य कल्पाए ते तो नथी. अवृत्तव्य शशशृंग प्राय बे. तेमाटे ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy