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________________ कागल. 303 म मले? लोमादार विलेद तो दुतो नथी. कोइ दिगंबर कहे . बेहडे नियत समा धिना ने ते प्रगट जूतुं. जे माटे समाधि कहेतां ध्यान कहे, ते तो केवलीने एनुं नथी. शुक्लथ्यानना बे पाश्या ध्यायापली ध्यानांतर कांड केवलज्ञान उपजे! बे पाया रह्या ले. तेतो बेहले अंतरमुहूर्ते होए. पद मासादिमान न होए. जो कहेशे ताव दिनमान मौन करी बेशे एहज समाधि. ते तो प्रयोजन शून्य ता दृश कर्म कारणविना केम मनाय? खोटो अर्थ बनावी कह्यु; पण साचो न प्रति नासे. इहां हेतु सहस्त्र देखाडे . पण आपणी मतिमंदपणे हेतूदाहरण न | स्फुरे. तोपण केम सूत्र वचन युक्तिरिक्तं कहीजे! उक्तंच श्रीयावश्यक निर्युक्तं "हे कणादाहरणासंनवे विस सुजन बुजिजा सवान्नुमयवितहतहावितंचिंतएमएनंति केवली केवल व्यवहारे स्वयं निदा करे. तिहां अंतराय न होए. नक्तंच विशेषावश्य के-दीत्तस्स लनंतस्स वनुजंतस्सव जिएस्स एस गुणो ॥ खोणंतराश्यत्ते जसेविग्धं पसंनवति. यतना पूर्वक बद्मस्थानीत थाहार ग्रहण करे. ते पण श्रुत व्यवहार प्रामाण्यकारी केवल व्यवहारज ले. इव्ये दोष तो दोषज नथी. नही तो समवसर गमध्ये शब्द, रूप, रस, गंध, प्रविचारे ते मैथुनातिकम हो जाए. तेमाटे कव लाहार निमित्त निदा व्यवहारे आगम व्यवहारीने किस्यो दोष न होय. तथा तुमे लिख्यो रे जे एक समय सिहव्यने तथा अलोकाकाशव्यने नत्पाद व्यय ध्रौव्य किम सधाए? तेउपर उत्पाद व्यय बे प्रकारे कह्यावे. एक प्रायोगिक एक वैश्रसिक-तिहां प्रायोगिक पुजल जीवश्व्यनेविषे स्पष्ट नणाए.वैश्रसिकतो अनुमान गम्य . जिलं सर्व क्षणिक सत्वान्यथानुपपत्तः ए जैनसाधन . सिघने ज्ञानपर्याय प्रथम समय जे वर्तमान विज्ञेयाकारोत्पाद इत्यादि दितीय समय तन्नास तिहां प्रायोगिकारोत्पाद अतीत झेयाकारोत्पाद इत्यादि संनवे. अलोकास्तकासे तत्तत् सम य संबंधोत्पादिविनाश मानवाज. नहितर क्षण शंकर थाए. इव्यार्थिक नय का ल त्रय संबंधरूपज सत्ता मानेले. पर्यायार्थिक नय मध्यम क्षणरूपज सत्ता मानेले. उनयमय मीलने त्रयात्मक वस्त सिह थाए. अत्र संमति गाथा-“दवं पडाव विजुयं, दव विउत्ताय पळवाणवि नप्पाय निई नंगा, हंदिद विय लस्कणं एयं. ॥१॥ तह्मामिलादिही, पत्तेयं दोवि मूल एया गयत अनिणणय समत्त पत्तेसु पडिपुन्नं ॥ २ ॥ ए ए पुण सगेह पाडिक्कम लरकणं ज्वेएहंपि जेण वे एगंता विनङमाणा अणेगंतो. ॥ ३ ॥ __ अर्थः-व्य,पर्यायरहित नथी. पर्याय, इव्यरहित नथी. उत्पाद स्थिति नंग ए Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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