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________________ ចង वीरस्तुतिरूप दुडीनुं स्तवन. गे वहेंच्यो; तेमा प्रथम एकहजारनो, बीजो त्रेसम्हजारनो अने त्रीजो बत्री शहजारनो ए सर्व केम? ७. समवायांगे नंदनवननु विष्कंन नवहजार न वसें योजननुं कडं, अने जंबुझोपपन्नतीमां नवहजार नवसे चोपन का कां. ए केम? एए. प्रमव्याकरणे तथा समवायांगे नवनपति वीश, चंद सूर्य बे, अने सौधर्मादिक दश एवं बत्रीश इंश कह्या, अने जंबुदीपपन्नत्तीमां झपन निवाणे सौधर्मादिक दश, नवनपति वीश, व्यंतर सोल अने चंइसूर्य बे-एवं अड तालीश इं कह्या. ए केम? ६० ठाणांगे गाणे बीजे इंश चोसत कह्या. ए केम? ६१. नववाश्मां जवन्यथी सात हाथनी कायावाला मोदे जाय; वली कां जे जघन्यथी बत्रीश अंगुल सिघनी अवगाहना होय. ए लेखे बे हाथनी जघन्य थ ई. ए केम? ६. जगवतीसूत्रना शतक चनदमामां नद्देशे अाठमे सिक्षशिला थी अलोकदेशे मणु योजन का, अने उववाश्मां संपूर्ण योजन का. ए केम? ६३. समवायांगे बह नरकना मध्यनागथी बहा घनोदधिनो चरमांत योगणा एंसीहजार योजन कह्यो; जिवानिगमे पृथ्वी उपरना घनोदधिनो चरमांत एक लाख उत्रीश हजार योजन अंतर कहो. तो जिवानिगमे एक लाख बेत्रीश ह जारनु अर्धकरतां अडस हजार योजन थाय. ए केम? ६४. समवायांगे अहा णुमे समवाये रेवती नक्षत्रथी जेष्टा लगी भोगणीश नवना तारा अहाणुं : अने समवायांगमांज निन्न निन्न नेला करतां सत्ताणु थायजे. ते एम के, रेवती नक्षत्र ना बत्रीश, अश्वनीना त्रण, नरणीना त्रण, कृत्तिकाना न, रोहिणीना पांच, मृग शिरना त्रण, बाख्रनो एक, पुनर्वसुना पांच, पुष्यना त्रण, अश्लेषाना ब, मघा ना सात,पूर्वाफाल्गुनीना बे, उत्तराफाल्गुनीनाबे, हस्तनापांच,चित्रानो एक, स्वांतिनो एक,विशारखाना पांच,अनुराधाना चार अने जेष्टाना त्रण-एवं सत्ता| ए केम? ६५. पन्नवणामां पंदरपदे घाणइंडियनो नवयोजननो उत्कृष्टो विषय कह्यो, अने रायपसे णीमा चारसें तथा पांचसेंनो कह्यो. एकेम? ६६ नगवतीसतक बते नदेशे सातमें प व्योपमनुं मान कडं,तेम अनुयोगदारेपण कह्यु; पणनगवतीमांबसंख्याता खंमविना कुन्नस्यो. तेणे करीयारानां मान कह्यां. सप्रयोजन कर्तुं अने अनुयोगबारे नगव तीउक्त ते निःप्रयोजक कह्यु. सूक्ष्म अमापव्योपम सप्रयोजक कमु. तेरो नारकी प्रमुखना आयु मविए. इत्यादिक घणी वातो. ए केम ? ६७. पन्नवणामां तेत्री शमे पदे असुरकुमार जघन्यथी पच्चीश योजन अवधि तथा सौधर्मादिक जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग कह्यो. ए केम? ६८ पन्नवणा सूत्रमा तेनकाय,बादर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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