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________________ ६८६ वीरस्तुतिरूप ढुंड नुं स्तवन. धाकर्मी प्रहार करतो सातकर्म बांधे. सिथिल दोयतो गाढ करे. इत्यादि. ए केम ? ४८ समवायांगे तेतरीश हजार योजन कांइक कणुं चतुस्पर्शे सूर्य यावे ए मकयुं ने जंबुद्वीपपन्नतीमां बतरीश हजार एक योजन फाफेरो चकुस्पर्शे सूर्य यावे. ए केम ? ४५. समवायांगे मेरुनी तलेटी दशहजार योजन पहली बे एक बे, जंबुद्वीपपन्नतीमा दश हजार नेवु फाफेरी कही बे. ए केम? ५० गवती सूत्रा शतक खामे नदेशे दशमे जीवने पुजल कहीए तथा पुजली क हीए. एम कह्यं बे ए केम? ५१. समवायांगे मेरुनां सोल नाम कह्यां बे, तेमां मुं प्रियदर्शन कह्युं बे तथा चौदमुं उत्तर कयुंबे, घने जंबुद्वीपपन्नतीमां सो ल नाम बे तेमां यामुं शिलोच्चय कह्युंबे घने चौदमुं उत्तम कांबे. ए केम ? ५३ पन्नवणामां योगीशमे पदे उद्मस्थने प्रणाहारी उत्कृष्ट बे समय कह्याबे, ने नगवतीमा उत्कृष्ट प्रणाहारीना त्रण समय कह्याले. ए केम ? ५३. एमज जीवा निगमे वे समय, नगवतीए समय त्रण. एकेम ? ५४ समवायांगे समण नगवान महावीरने बेतालीश वरस काजेरो साधुपर्याय कह्यो, घने पर्युषणाकल्पमां बे ताजीश पूरी कां. ए केम ? ५५. जीवा निगमे रुचकद्वीपथी संख्यातु मान कह्युं बज पंचाशी क रुचक छीपनुं मा ने जीवा निगमने लेखे ठगल बमणां गणतां एक निखर्व चार रोड बोतेर लाख मान श्रावे. वली त्रिप्रत्ययावतार गणे तो न ११००२२३४७७७६००००० थाय; अने जगवती सूत्रमां शतक बठे उदे शे सात तथा अनुयोगद्वारे एकसो चोराणु ांक लगे तो संख्यातु गएयुं, वली पालाने माने संख्यातु तो वेगलुं रह्युं; पढी असंख्यातु यावे तो रुचक द्वीप संख्यातो केम थयो ? ५६. समवायांगे खाडतरीशमे समवाए मेरुनो बीजो कांम प्रातरीश हजार योजन उंचो कह्यो; तथा सोलमे समवाये प्रथम कांम एकस व हजार योजननो उंचो कह्यो; जंबुद्वीपपन्नतीमां हेग्लो कांम एकहजारयो जननो बाहुल्ये कोबे ; मध्य कांम त्रेसठहजार योजननो बाहुल्य कह्यो, उप लोकांम बत्री शहजार जोजननो बाहुल्य कह्यो, एम सर्व पूर्व अपरे थ एक लाख योजन बाहुल्य बे. ए लाख योजन बाहुल्यपणे जंबुद्वीपमां को ते वारे बीजां नदी, पर्वत, अने सात क्षेत्र ए सर्व केम मायां ? ५७ तथा कहे शो के बाहुल्य ते उंचपणु हशे तो पूर्व अपरनो शो अर्थ ? तथा उंचपणु कहे ai पण समवायांगे नवाणु हजार योजन वे जागे वर्हेच्यो तेहमां प्रथम एकराव हजार ने बीजो यात्रीस हजारनो कह्यो. जंबु झोपपन्नतीमां कांदा सहित त्रणे ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002167
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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